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  • यजुर्वेद - अध्याय 21/ मन्त्र 39
    ऋषिः - स्वस्त्यात्रेय ऋषिः देवता - अश्व्यादयो देवताः छन्दः - निचृदत्यष्टिः स्वरः - गान्धारः
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    होता॑ यक्ष॒द् वन॒स्पति॑ꣳ शमि॒तार॑ꣳ श॒तक्र॑तुं भी॒मं न म॒न्युꣳ राजा॑नं व्या॒घ्रं नम॑सा॒श्विना॒ भाम॒ꣳ सर॑स्वती भि॒षगिन्द्रा॑य दुहऽइन्द्रि॒यं पयः॒ सोमः॑ परि॒स्रुता॑ घृ॒तं मधु व्यन्त्वाज्य॑स्य॒ होत॒र्यज॑॥३९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    होता॑। य॒क्ष॒त्। वन॒स्पति॑म्। श॒मि॒तार॑म्। श॒तक्र॑तु॒मिति॑ श॒तऽक्र॑तुम्। भी॒मम्। न। म॒न्युम्। राजा॑नाम्। व्या॒घ्रम्। नम॑सा। अ॒श्विना। भाम॑म्। सर॑स्वती। भि॒षक्। इन्द्रा॑य। दु॒हे॒। इ॒न्द्रि॒यम्। पयः॑। सोमः॑। प॒रि॒स्रुतेति॑ परि॒ऽस्रुता॑। घृ॒तम्। मधु॑। व्यन्तु॑। आज्य॑स्य। होतः॑। यज॑ ॥३९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    होता यक्षद्वनस्पतिँ शमितारँ शतक्रतुम्भीमन्न मन्युँ राजानँ व्याघ्रन्नमसाश्विना भामँ सरस्वती भिषगिन्द्राय दुहऽइन्द्रियं पयः सोमः परिस्रुता घृतम्मधु व्यन्त्वाज्यस्य होतर्यज ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    होता। यक्षत्। वनस्पतिम्। शमितारम्। शतक्रतुमिति शतऽक्रतुम्। भीमम्। न। मन्युम्। राजानाम्। व्याघ्रम्। नमसा। अश्विना। भामम्। सरस्वती। भिषक्। इन्द्राय। दुहे। इन्द्रियम्। पयः। सोमः। परिस्रुतेति परिऽस्रुता। घृतम्। मधु। व्यन्तु। आज्यस्य। होतः। यज॥३९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 21; मन्त्र » 39
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    भावार्थ -
    (होता) योग्य पदाधिकारियों का नियोक्ता 'होता' विद्वान् ( वनस्पतिम् ) वट आदि महावृक्ष के समान समस्त प्रजाओं को निःस्वार्थ भाव से आश्रय देने वाले, ( शमितारम् ) वन में लगी आग को जल धाराओं से शमन करने वाले, मेघ के समान संतप्त प्रजाओं को शान्ति देने वाले, ( शतक्रतुम् ) सैकड़ों प्रकार के कर्म करने में समर्थ विद्युत् के समान सैकड़ों सामथ्र्य से युक्त और ( मन्युं न भीमम् ) मन्यु, क्रोध के समान अति भयकारी ( व्याघ्रं राजानम् ) पशुओं पर व्याघ्र के समान, अन्य बड़े राजाओं पर भी आक्रमण करने में निर्भय राजा को (नमसा ) सबको नमाने वाले, दण्डाधिकार से युक्त करके और (अश्विनौ) दो मुख्य पदाधिकारियों को भी ( यक्षत् ) नियुक्त करे । (सरस्वती) उत्तम ज्ञान पूर्ण विदुषी, विद्वत्-सभा और वेदवाणी (इन्द्राय ) इन्द्र को ( भामम् ) असह्य क्रोध रूप तेज और ( इन्द्रियम् ) ऐश्वर्य को (दुहे) प्रदान करती है । ( पयः सोमः ० इत्यादि) पूर्ववत् ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - निचृदत्यष्टिः । गान्धारः ॥

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