यजुर्वेद - अध्याय 22/ मन्त्र 20
ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः
देवता - प्रजापत्यादयो देवताः
छन्दः - आद्यस्य भुरिग्धृतिः
स्वरः - ऋषभः
1
काय॒ स्वाहा॒ कस्मै॒ स्वाहा॑ कत॒मस्मै॒ स्वाहा॒ स्वाहा॒धिमाधी॑ताय॒ स्वाहा॒ मनः॑ प्र॒जाप॑तये॒ स्वाहा॑ चि॒त्तं विज्ञा॑ता॒यादि॑त्यै॒ स्वाहादि॑त्यै म॒ह्यै स्वाहादि॑त्यै सुमृडी॒कायै॒ स्वाहा॒ सर॑स्वत्यै॒ स्वाहा॒ सर॑स्वत्यै पाव॒कायै॒ स्वाहा॒ सर॑स्वत्यै बृह॒त्यै स्वाहा॑ पू॒ष्णे स्वाहा॑ पू॒ष्णे प्र॑प॒थ्याय॒ स्वाहा॑ पू॒ष्णे न॒रन्धि॑षाय॒ स्वाहा॒ त्वष्ट्रे॒ स्वाहा॒ त्वष्ट्रे॑ तु॒रीपा॑य॒ स्वाहा॒ त्वष्ट्रे॑ पुरु॒रूपा॑य॒ स्वाहा॒ विष्ण॑वे॒ स्वाहा॒ विष्ण॑वे निभूय॒पाय॒ स्वाहा॒ विष्ण॑वे शिपिवि॒ष्टाय॒ स्वाहा॑॥२०॥
स्वर सहित पद पाठकाय॑। स्वाहा॑। कस्मै॑। स्वाहा॑। क॒त॒मस्मै॑। स्वाहा॑। स्वाहा॑। आ॒धिमित्या॒ऽधिम्। आधी॑ता॒येत्याऽधी॑ताय। स्वाहा॑। मनः॑। प्र॒जाप॑तय॒ इति॑ प्र॒जाऽप॑तये। स्वाहा॑। चि॒त्तम्। विज्ञा॑ता॒येति॑ विऽज्ञा॑ताय। अदि॑त्यै। स्वाहा॑। अदि॑त्यै। म॒ह्यै। स्वाहा॑। अदि॑त्यै। सु॒मृ॒डी॒काया॒ इति॑ सुऽमृडी॒कायै॑। स्वाहा॑। सर॑स्वत्यै। स्वाहा॑। सर॑स्वत्यै। पा॒व॒कायै॑। स्वाहा॑। सर॑स्वत्यै। बृ॒ह॒त्यै। स्वाहा॑। पू॒ष्णे। स्वाहा॑। पू॒ष्णे। प्र॒प॒थ्या᳖येति॑ प्रऽपथ्या᳖य। स्वाहा॑। पू॒ष्णे। न॒रन्धि॑षाय। स्वाहा॑। त्वष्ट्रे॑। स्वाहा॒। त्वष्ट्रे॑। तु॒रीपा॑य। स्वाहा॑। त्वष्ट्रे॑। पु॒रु॒रूपा॒येति॑ पुरु॒ऽरूपा॑य स्वाहा॑। विष्ण॑वे। स्वाहा॑। विष्ण॑वे। नि॒भू॒य॒पायेति॑ निभूय॒ऽपाय॑। स्वाहा॑। विष्ण॑वे। शि॒पि॒वि॒ष्टायेति॑ शिपि॒ऽवि॒ष्टाय॑। स्वाहा॑ ॥२० ॥
स्वर रहित मन्त्र
काय स्वाहा कस्मै स्वाहा कतमस्मै स्वाहा स्वाहाधिमाधीताय स्वाहा मनः प्रजापतये स्वाहाचित्तँविज्ञातायादित्यै स्वाहादित्यै मह्यै स्वाहादित्यै सुमृडीकायै स्वाहा सरस्वत्यै स्वाहा सरस्वत्यै पावकायै स्वाहा सरस्वत्यै बृहत्यै स्वाहा पूष्णे स्वाहा पूष्णे प्रपथ्याय स्वाहा पूष्णे नरन्धिषाय स्वाहा त्वष्ट्रे स्वाहा त्वष्ट्रे तुरीपाय स्वाहा त्वष्ट्रे पुरुरूपाय स्वाहा विष्णवे स्वाहा विष्णवे निभूयपाय स्वाहा विष्णवे शिपिविष्टाय स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठ
काय। स्वाहा। कस्मै। स्वाहा। कतमस्मै। स्वाहा। स्वाहा। आधिमित्याऽधिम्। आधीतायेत्याऽधीताय। स्वाहा। मनः। प्रजापतय इति प्रजाऽपतये। स्वाहा। चित्तम्। विज्ञातायेति विऽज्ञाताय। अदित्यै। स्वाहा। अदित्यै। मह्यै। स्वाहा। अदित्यै। सुमृडीकाया इति सुऽमृडीकायै। स्वाहा। सरस्वत्यै। स्वाहा। सरस्वत्यै। पावकायै। स्वाहा। सरस्वत्यै। बृहत्यै। स्वाहा। पूष्णे। स्वाहा। पूष्णे। प्रपथ्यायेति प्रऽपथ्याय। स्वाहा। पूष्णे। नरन्धिषाय। स्वाहा। त्वष्ट्रे। स्वाहा। त्वष्ट्रे। तुरीपाय। स्वाहा। त्वष्ट्रे। पुरुरूपायेति पुरुऽरूपाय स्वाहा। विष्णवे। स्वाहा। विष्णवे। निभूयपायेति निभूयऽपाय। स्वाहा। विष्णवे। शिपिविष्टायेति शिपिऽविष्टाय। स्वाहा॥२०॥
विषय - प्रभु के 'क' आदि नाना गुण, कर्म सूचक नाम और उनका आदर ।
भावार्थ -
(काय, कस्मै, कतमस्मै) साधनों के करने वाले, सुखस्वरूप प्रजापालक प्रजापति का (स्वाहा ) उत्तम मान करो । ( आधिम् ) आधीन, अग्निस्थापन या पदार्थसंग्रह करने वाले का और ( आधीताय ) समस्त विद्याओं को पढ़ने वाले का (स्वाहा ) सत्कार करो । ( मनः = मनसे) मननशील और (प्रजापतये) प्रजा के पालक का (स्वाहा ) आदर करो । ( चित्तंचित्ताय) चित्तवत् चिन्तन करने वाले का और (विज्ञाताय ) विज्ञान और उसके विशेष ज्ञाता का आदर करो। (आदित्यै स्वाहा ) पृथिवी और माता का आदर करो (अदित्यै मह्यै) अखण्ड पृथ्वी, पूजनीय माता और विशाल अखण्ड शासन की व्यवस्था और पूज्य गोमाता का (स्वाहा) आदर करो । ( सुमृडीकायै आदित्यै स्वाहा ) समस्त सुखों के देने वाली, माता, वेदवाणी, वर्गों का उत्तम उपयोग करो । ( सरस्वत्यै स्वाहा ) सरस्वती, वेदवाणी, स्त्री और विद्वत्सभा का आदर करो । ( पावकायै सरस्वत्यै) पवित्र करने वाली ज्ञानमयी ब्रह्म शक्ति की (स्वाहा ) पूजा करो । ( बृहत्यै सरस्वत्यै) बृहती, बड़ी भारी, विद्वानों की सभा या प्रभुवाणी का ( स्वाहा ) अभ्यास, मनन, श्रवण और अध्यापन, वाचन, दान करो । (पूष्णे स्वाहा ) पोषक पुरुष का आदर करो । ( प्रपथ्यायं ) उत्तम पथ्य, आहारयोग्य पोषक अन्न का (स्वाहा ) सदुपयोग करो । और (नरन्धिपाय पूष्णे ) मनुष्यों के धारक पोषक प्रजापालक राजा का ( स्वाहा ) आदर करो । ( त्वष्ट्रे स्वाहा ) त्वष्टा, शिल्पी का आदर करो, (तुरीपाय त्वष्ट्रे स्वाहा ) तुरी, अर्थात् नौकाओं वा बुनने के यन्त्रों के वा वेगवान् रथों के पालक, निर्माता का आदर करो । और ( पुरुरूपाय त्वष्ट्रे ) नाना रूपों के पदार्थों के बनाने वाले, त्वष्टा, परमात्मा की ( स्वाहा ) उपासना करो । ( विष्णवे स्वाहा ) व्यापक परमेश्वर की उपासना करो । (निभूयपाय विष्णवे स्वाहा ) सबका आश्रय होकर, सबकी रक्षा करे उस व्यापक शक्तिमान्, राजा का आदर करो और (शिपिविष्टाय विष्णवे स्वाहा ) समस्त पशुओं और दुःखी जनों में कृपालु, व्यापक अथवा शक्ति रूप या किरणों में तेज रूप से विद्यमान तेजस्वी, सर्वोत्पादक प्रभु शक्ति का आदर करो ।
यही सब नाम ईश्वर, परमेश्वर, आत्मा और राजा के समान होने से उनमें उन गुणों का ग्रहण होता है ।
टिप्पणी -
१ काय । २ सरस्वत्यै ।औद्ग्राभणानि ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - कादयो देवताः । ( १ ) निचृद् अतिधृतिः । ( २ ) अतिधृतिः । षड्जः ॥
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