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  • यजुर्वेद - अध्याय 23/ मन्त्र 14
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - ब्रह्मादेवता छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    सꣳशि॑तो र॒श्मिना॒ रथः॒ सꣳशि॑तो र॒श्मिना॒ हयः॑। सꣳशि॑तो अ॒प्स्वप्सु॒जा ब्र॒ह्मा सोम॑पुरोगवः॥१४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सशि॑त॒ इति॒ सम्ऽशि॑तः। र॒श्मिना॑। रथः॑। सशि॑त॒ इति॒ सम्ऽशि॑तः। र॒श्मिना॑। हयः॑। सशि॑त॒ इति॒ सम्ऽशि॑तः। अ॒प्स्वित्य॒प्ऽसु। अ॒प्सु॒जा इत्य॑प्सु॒ऽजा। ब्र॒ह्मा। सोम॑ऽपुरोगवः ॥१४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सँशितो रश्मिना रथः सँशितो रश्मिना हयः । सँशितो अप्स्वप्सुजा ब्रह्मा सोमपुरोगवः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सशित इति सम्ऽशितः। रश्मिना। रथः। सशित इति सम्ऽशितः। रश्मिना। हयः। सशित इति सम्ऽशितः। अप्स्वित्यप्ऽसु। अप्सुजा इत्यप्सुऽजा। ब्रह्मा। सोमऽपुरोगवः॥१४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 23; मन्त्र » 14
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    भावार्थ -
    ( रश्मिना ) रस्सी से ( संशित: ) अच्छी प्रकार बंधा (रथः) रथ अच्छा सुखकारी होता है और (हयः) घोड़ा भी (रश्मिना ) रासों से बंधा हुआ वश में रहता है उसी प्रकार (अप्सुजाः) प्रजा में उत्पन्न विद्वान् (अप्सु संशितः) प्रजाओं द्वारा ही भली प्रकार नियम व्यवस्थाओं और कर्म, कर्त्तव्यों से बद्ध हो और (ब्रह्मा) ब्रह्म, वेद का जानने हारा विद्वान् ही (सोमपुरोगवः) राजा के आगे २ चलने हारा, उसका मार्गदर्शक हो । अथवा - ( अप्सुजाः) प्रजाओं में तेज से स्वामी बनने वाला राजा (अप्सु संशितः) प्रजाओं द्वारा ही खूब तीक्ष्ण, एवं कर्त्तव्यपरायण, व्यवस्थाबद्ध किया जाकर (ब्रह्मा) महान् शक्तिमान् प्रभु और विद्वान् के समान (सोम-'पुरोगवः ) ऐश्वर्य या राष्ट्र का नेता हो । अध्यात्म में - (रथः) देह, (रश्मिना ) सूर्यकिरणवत् तप से (संशितः ) तीक्ष्ण हो । (हयः) इन्द्रियां भी तप से तीक्ष्ण हों । (अप्सुजाः) प्राण भी तप से तप्त हों और तब (ब्रह्मा) विद्वान् योगी (सोम- पुरोगवः ) सोमनाम ब्रह्म रस प्राप्ति में अग्रसर होता है ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ब्रह्मा । निचृदनुष्टुप् । गान्धारः ॥

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