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  • यजुर्वेद - अध्याय 23/ मन्त्र 39
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - अध्यापको देवता छन्दः - भुरिग्गायत्री स्वरः - षड्जः
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    कस्त्वाछ्य॑ति॒ कस्त्वा॒ विशा॑स्ति॒ कस्ते॒ गात्रा॑णि शम्यति।कऽउ॑ ते शमि॒ता क॒विः॥३९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कः। त्वा॒। आछ्य॑ति। कः। त्वा॒। वि। शा॒स्ति॒। कः। ते॒। गात्रा॑णि। श॒म्य॒ति॒। कः। उँ॒ऽइत्यूँ॑। ते॒। श॒मि॒ता। क॒विः ॥३९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कस्त्वाच्छ्यति कस्त्वा विशास्ति कस्ते गात्राणि शम्यति । कऽउ ते शमिता कविः॥


    स्वर रहित पद पाठ

    कः। त्वा। आछ्यति। कः। त्वा। वि। शास्ति। कः। ते। गात्राणि। शम्यति। कः। उँऽइत्यूँ। ते। शमिता। कविः॥३९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 23; मन्त्र » 39
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    भावार्थ -
    हे प्रजाजन ! (त्वा क: आछ्यति) तुझको कौन विद्वान् पुरुष सब तरफ से काटता, या दण्डित करता है ? (त्वा कः विशास्ति) तुझको कौन नाना प्रकारों से विविध शास्त्रों का उपदेश करता है (ते गात्राणि ) तेरे अंगों को (कः शम्यति) कौन सुख पहुँचाता है । (क: उ) कौन विद्वान् पुरुष (ते शमिता) तुझे शान्ति प्राप्त करता है। उत्तर (कः ) सुखकारक, प्रजापालक राजा ही प्रजा को दण्ड देता है । वही उस पर शासन करता हैं, वही राज्य के समस्त अंगों को सुखी करता है, वही उसका (शमिता )शान्तिप्रद है ।

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