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  • यजुर्वेद - अध्याय 23/ मन्त्र 58
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - समिधा देवता छन्दः - निचृत त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    षड॑स्य वि॒ष्ठाः श॒तम॒क्षरा॑ण्यशी॒तिर्होमाः॑ स॒मिधो॑ ह ति॒स्रः।य॒ज्ञस्य॑ ते वि॒दथा॒ प्र ब्र॑वीमि स॒प्त होता॑रऽऋतु॒शो य॑जन्ति॥५८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    षट्। अ॒स्य॒। वि॒ष्ठाः। वि॒स्था इति॑ वि॒ऽस्थाः। श॒तम्। अ॒क्षरा॑णि। अ॒शी॒तिः। होमाः॑। स॒मिध॒ इति॑ स॒म्ऽइधः॑। ह॒। ति॒स्रः। य॒ज्ञस्य॑। ते॒ वि॒दथा॑। प्र। ब्र॒वी॒मि॒। स॒प्त। होता॑रः। ऋ॒तु॒श इति॑ ऋतु॒ऽशः। य॒ज॒न्ति॒ ॥५८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    षडस्य विष्ठाः शतमक्षराण्यशीतिर्हामाः समिधो ह तिस्रः । यज्ञस्य ते विदथा प्रब्रवीमि सप्त होतारऽऋतुशो यजन्ति ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    षट्। अस्य। विष्ठाः। विस्था इति विऽस्थाः। शतम्। अक्षराणि। अशीतिः। होमाः। समिध इति सम्ऽइधः। ह। तिस्रः। यज्ञस्य। ते विदथा। प्र। ब्रवीमि। सप्त। होतारः। ऋतुश इति ऋतुऽशः। यजन्ति॥५८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 23; मन्त्र » 58
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    भावार्थ -
    उत्तर—(अस्य) इस अध्यात्म यज्ञ के ( विष्ठाः षट् ) छः आश्रय हैं । ५ प्राण, छठा मन या आत्मा । (शतम् अक्षराणि) जीवन के सौ वर्ष, सौ अक्षर हैं । (अशीतिः होमा:) इस पुरुष यज्ञ में (अशीतिः) अन्न का अशन अर्थात् भोजन करना ही 'होम' है । (तिस्रः समिधः) तीन समिधा हैं बाल्य, तारुण्य और वार्धक्य । (यज्ञस्य विदथा ) यज्ञविषयक ज्ञानों को (प्र ब्रवीमि ) मैं बतलाता हूँ कि ( सप्त होतारः) सात होता, शिर में स्थित सात प्राण (ऋतुशः) ऋतु वा प्राणों के बल पर (यजन्ति) यज्ञ करते हैं, वे ग्राह्य विषयों से ज्ञान प्राप्त करते हैं । संवत्सररूप यज्ञ में—६ विष्ठा, आश्रय, ६ ऋतुएं हैं, (शतं अक्षराणि) सौ अक्षर हैं । अर्थात् सैकड़ों दिन रात वा जीवन के १०० वर्ष अक्षर हैं । (अशीतिर्होमा :) अन्न का भोजन ही होम योग्य पदार्थ है । तीन समिधाएं तीन मुख्य ऋतु हैं, गर्मी सर्दी और वर्षा और सात रश्मियां जल ग्रहण करने से 'होता' हैं ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - समिधो देवताः । प्रतिप्रश्नः । यज्ञो देवता । निचृत् त्रिष्टुप् । धैवतः ॥

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