यजुर्वेद - अध्याय 24/ मन्त्र 29
ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः
देवता - प्रजापत्यादयो देवताः
छन्दः - विराडनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
1
प्र॒जाप॑तये॒ पुरु॑षान् ह॒स्तिन॒ऽआ ल॑भते वा॒चे प्लुषीँ॒श्चक्षु॑षे म॒शका॒ञ्छ्रोत्रा॑य भृङ्गाः॑॥२९॥
स्वर सहित पद पाठप्र॒जा॑पतय॒ इति॑ प्र॒जाऽप॑तये। पुरु॑षान्। ह॒स्तिनः॑। आ। ल॒भ॒ते॒। वा॒चे। प्लुषी॑न्। चक्षु॑षे। म॒शका॑न्। श्रोत्रा॑य। भृङ्गाः॑। २९ ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्रजापतये पुरुषान्हस्तिनऽआलभते वाचे प्लुषीँश्चक्षुषे मशकाञ्छ्रोत्राय भृङ्गाः ॥
स्वर रहित पद पाठ
प्रजापतय इति प्रजाऽपतये। पुरुषान्। हस्तिनः। आ। लभते। वाचे। प्लुषीन्। चक्षुषे। मशकान्। श्रोत्राय। भृङ्गाः।२९॥
विषय - भिन्न-भिन्न गुणों और विशेष हुनरों के लिये भिन्न-भिन्न प्रकार के नाना पक्षियों और जानवरों के चरित्रों का अध्ययन और संग्रह ।
भावार्थ -
( प्रजापतये) प्रजापालक राजा की सेवा के लिये ( पुरुषान् ) चीर पुरुषों को और (हस्तिन:) हाथियों को (आलभते) प्राप्त करे । (वाचे) वाणी के लिये (प्लुषीन् ) प्लुषी नामक जन्तुओं को प्राप्त करे । ( चक्षुषे मषकान् ) आंख के लिये छोटे-छोटे मच्छरों को देखे । जिस प्रकार चक्षु के रूप को देखकर वे मुग्ध होते हैं ऐसे उत्तम रूपों पर चक्षु को लगावे । ( श्रोत्राय भृङ्गाः) श्रवणेन्द्रिय के सुख के लिये (भृङ्गाः) भृङ्गों को प्राप्त करे, उनके सुन्दर झंकार श्रवण करे ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - प्रजापत्यादयः। विराड्नुष्टुप् । गान्धारः ॥
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