Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 25/ मन्त्र 13
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - परमात्मा देवता छन्दः - निचृत त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    0

    यऽआ॑त्म॒दा ब॑ल॒दा यस्य॒ विश्व॑ऽउ॒पास॑ते प्र॒शिषं॒ यस्य॑ दे॒वाः।यस्य॑ छा॒याऽमृतं॒ यस्य॑ मृ॒त्युः कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम॥१३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यः। आ॒त्म॒दा। इत्या॑त्म॒ऽदाः। ब॒ल॒दा इति॑ बल॒ऽदाः। यस्य॑। विश्वे॑। उ॒पास॑त॒ इत्यु॑प॒ऽआस॑ते। प्र॒शिष॒मिति॑ प्र॒ऽशिष॑म्। यस्य॑। दे॒वाः। यस्य॑। छा॒या। अ॒मृत॑म्। यस्य॑। मृ॒त्युः। कस्मै॑। दे॒वाय॑। ह॒विषा॑। वि॒धे॒म॒ ॥१३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यऽआत्मदा बलदा यस्य विश्व उपासते प्रशिषँयस्य देवाः । यस्य छायामृतँयस्य मृत्युः कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    यः। आत्मदा। इत्यात्मऽदाः। बलदा इति बलऽदाः। यस्य। विश्वे। उपासत इत्युपऽआसते। प्रशिषमिति प्रऽशिषम्। यस्य। देवाः। यस्य। छाया। अमृतम्। यस्य। मृत्युः। कस्मै। देवाय। हविषा। विधेम॥१३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 25; मन्त्र » 13
    Acknowledgment

    भावार्थ -
    (यः) जो परमेश्वर (आत्मदाः) आत्मा, चेतन जीव को प्राणियों के शरीर में प्रदान करता है और जो (बलदाः) जीवों को जीने और बाधक कारणों को दूर करने का बल प्रदान करता है अथवा (यः) ! जो (आत्मदाः) समस्त विश्व को अपना ऐश्वर्य प्रदान करता है (यस्य), जिसके ( प्रशिषम् ) उत्कृष्ट शासन को (विश्वे देवा:) समस्त सामान्य जन और विद्वान् गण एवं छोटे बड़े सूर्य आदि लोक भी (उपासते ) शरण के समान प्राप्त करते हैं और उसके शासनकारी स्वरूप की उपासना या ध्यान करते हैं । (यस्य): जिसकी (छाया) आश्रय लेना (अमृतम् ) अमृत स्वरूप, अभय और मृत्यु पर विजय है । और (यस्य) जिसके शासन का भङ्ग करना ही (मृत्युः) मृत्यु है । (कस्मै देवाय हविषा विधेम ) उस सुख- स्वरूप प्रजापालक सब सुखों के दाता परमेश्वर की हम ज्ञान स्तुति द्वारा उपासना करें । राजा के पक्ष में- बह (आत्मदाः) अपने आपको राष्ट्र में सौंपता और राष्ट्र शरीर में आत्मा के समान ऐश्वर्य को भोगता है, (बलदा) राष्ट्र में बल प्रदान करता है । समस्त सामान्य जन और (देवाः) विजिगीषु राजा भी उस शासन का आश्रय लेते हैं जिसकी (च्छाया) छत्रछाया अभय के समान है जिसकी आज्ञा भङ्ग करना, करने वालों के लिये मृत्यु है उसकी हम अन्न आदि द्वारा सेवा करें ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - परमात्मा । निचृत् त्रिष्टुप् । धैवतः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top