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  • यजुर्वेद - अध्याय 25/ मन्त्र 15
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - विद्वांसो देवता छन्दः - जगती स्वरः - निषादः
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    दे॒वानां॑ भ॒द्रा सु॑म॒तिर्ऋ॑जूय॒तां दे॒वाना॑ रा॒तिर॒भि नो॒ निव॑र्त्तताम्।दे॒वाना॑ स॒ख्यमुप॑सेदिमा व॒यं दे॒वा न॒ऽआयुः॒ प्रति॑रन्तु जी॒वसे॑॥१५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दे॒वाना॑म्। भ॒द्रा। सु॒म॒तिरिति॑ सुऽम॒तिः। ऋ॒जूय॒ताम्। ऋ॒जु॒य॒तामित्यृ॑जुऽय॒ताम्। दे॒वाना॑म्। रा॒तिः। अ॒भि। नः॒। नि। व॒र्त्त॒ता॒म्। दे॒वाना॑म्। स॒ख्यम्। उप॑। से॒दि॒म॒। आ। व॒यम्। दे॒वाः। नः॒। आयुः॑। प्र। ति॒र॒न्तु॒। जी॒वसे॑ ॥१५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देवानाम्भद्रा सुमतिरृजूयतान्देवानाँ रातिरभि नो नि वर्तताम् । देवानाँ सख्यमुपसेदिमा वयन्देवा नऽआयुः प्रतिरन्तु जीवसे ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    देवानाम्। भद्रा। सुमतिरिति सुऽमतिः। ऋजूयताम्। ऋजुयतामित्यृजुऽयताम्। देवानाम्। रातिः। अभि। नः। नि। वर्त्तताम्। देवानाम्। सख्यम्। उप। सेदिम। आ। वयम्। देवाः। नः। आयुः। प्र। तिरन्तु। जीवसे॥१५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 25; मन्त्र » 15
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    भावार्थ -
    ( देवानाम् ) विद्वान्, विद्या के दाता, ज्ञानप्रकाशक पुरुषों की (भद्रा ) कल्याणकारिणी, सुखप्रद, (सुमतिः) उत्तम ज्ञानमयी, शुभ मति, (नः) हमें ( नि वर्त्तताम् ) सब प्रकार से प्राप्त हो । और (ऋजूयताम् ) सरल, धर्म के भागों से जाने वाले सबकी वृद्धि की कामना करने वाले, ( देवानाम् ) और दानशील विद्वान् पुरुषों के (रातिः) ज्ञान और धन के दान (नः) हमें ( अभि नि वर्त्तताम् ) सब ओर से प्राप्त हों । ( वयम् ) हम ( देवानां सख्यम् ) विद्वानों के मित्रभाव को ( उप सेदिम) प्राप्त हों। (देवाः) विद्वान् पुरुष (जीवसे) दीर्घ जीवन के लिये (आयुः प्रतिरन्तु) आयु की वृद्धि करें ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - विद्वांसः । जगती । निषादः ॥

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