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  • यजुर्वेद - अध्याय 28/ मन्त्र 32
    ऋषिः - सरस्वत्यृषिः देवता - इन्द्रो देवता छन्दः - भुरिक् शक्वरी स्वरः - धैवतः
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    होता॑ यक्षत् सु॒रेत॑सं॒ त्वष्टा॑रं पुष्टि॒वर्द्ध॑नꣳ रू॒पाणि॒ बिभ्र॑तं॒ पृथ॒क् पुष्टि॒मिन्द्रं॑ वयो॒धस॑म्।द्वि॒पदं॒ छन्द॑ऽइन्द्रि॒यमु॒क्षाणं॒ गां न वयो॒ दध॒द् वेत्वाज्य॑स्य॒ होत॒र्यज॑॥३२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    होता॑। य॒क्ष॒त्। सु॒रेत॑स॒मिति॑ सु॒ऽरेत॑सम्। त्वष्टा॑रम्। पु॒ष्टि॒वर्ध॑न॒मिति॑ पुष्टि॒ऽवर्ध॑नम्। रू॒पाणि॑। बिभ्र॑तम्। पृथ॑क्। पुष्टि॑म्। इन्द्र॑म्। व॒यो॒धस॒मिति॑ वयः॒ऽधस॑म्। द्वि॒पद॒मिति॑ द्वि॒ऽपद॑म्। छन्दः॑। इ॒न्द्रि॒यम्। उ॒क्षाण॑म्। गाम्। न। वयः॑। दध॑त्। वेतु॑। आज्य॑स्य। होतः॑। यज॑ ॥३२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    होता यक्षत्सुरेतसन्त्वष्टारम्पुष्टिवर्धनँ रूपाणि बिभ्रतम्पृथक्पुष्टिमिन्द्रँवयोधसम् । द्विपदञ्छन्द इन्द्रियमुक्षाणङ्गां न वयो दधद्वेत्वाज्यस्य होतर्यज ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    होता। यक्षत्। सुरेतसमिति सुऽरेतसम्। त्वष्टारम्। पुष्टिवर्धनमिति पुष्टिऽवर्धनम्। रूपाणि। बिभ्रतम्। पृथक्। पुष्टिम्। इन्द्रम्। वयोधसमिति वयःऽधसम्। द्विपदमिति द्विऽपदम्। छन्दः। इन्द्रियम्। उक्षाणम्। गाम्। न। वयः। दधत्। वेतु। आज्यस्य। होतः। यज॥३२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 28; मन्त्र » 32
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    भावार्थ -
    (होता) 'होता' योग्याधिकार देनेवाला विद्वान् ( सुरेतसम् ) उत्तम वीर्यवान्, उत्पादक बल से सम्पन्न, (त्वष्टारम्) कान्तिमान्, तेजस्वी, ( पुष्टिवर्धनम् ) पुष्टिकारक अन्नादि सम्पत्ति के वर्धक ( रूपाणि विभ्रतम् ) नाना प्रकार के पशुओं को पालन-पोषण करने वाले, ( वयोधसम् ) पूर्ण दीर्घायु को धारण करने वाले, ( इन्द्रम् ) ऐश्वर्यवान् पुरुष को ( पृथक ) पृथक्-पृथक् अलग-अलग नाना प्रकार की ( पुष्टिम् ) पुष्टियुक्त समृद्धि (यक्षत्) धारण करावे । वह राष्ट्र में (द्विपदं छन्दः) द्विपदा गायत्री के २० अक्षरों के समान २० वर्षो तक ( इन्द्रियम ) इन्द्रिय- संयम का पालन करावे । और (उक्षाणं गां न वयः) वीर्यसेचन में समर्थ बैल के समान बल वीर्य को ( दधत् ) धारण करे । और (आज्यस्य वेतु) राष्ट्र के ऐश्वर्य या वीर्य की रक्षा करे । (होतः यज) हे विद्वन् ! ऐसे उत्तम पुरुष को योग्य अधिकार प्रदान कर । अर्थात् धन, धान्य, सम्पत्ति, भूमि आदि का पृथक अधिकार बालिग होने पर दिया जाय और वह अधिकार पुरुष को (द्विपदः छन्दः) द्विपद् छन्द अर्थात् १२+८ = २० वर्ष के बाद प्राप्त हो । वह ब्रह्मचारी, सदा- चारी और कमाऊ हो, नपुंसक, निर्बल और अल्पायु न हो ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - इन्द्रः । भुरिक् शक्वरी । धैवतः ॥

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