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  • यजुर्वेद - अध्याय 28/ मन्त्र 42
    ऋषिः - सरस्वत्यृषिः देवता - इन्द्रो देवता छन्दः - निचृदतिजगती स्वरः - निषादः
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    दे॒वो नरा॒शꣳसो॑ दे॒वमिन्द्रं॑ वयो॒धसं॑ दे॒वो दे॒वम॑वर्द्धयत्।वि॒राजा॒ छन्द॑सेन्द्रि॒यꣳ रू॒पमिन्द्रे॒ वयो॒ दध॑द् वसु॒वने॑ वसु॒धेय॑स्य वेतु॒ यज॑॥४२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दे॒वः। नरा॒शꣳसः॑। दे॒वम्। इन्द्र॑म्। व॒यो॒धस॒मिति॑ वयः॒ऽधस॑म्। दे॒वः। दे॒वम्। अ॒व॒र्ध॒य॒त्। वि॒राजेति॑ वि॒ऽराजा॑। छन्द॑सा। इ॒न्द्रि॒यम्। रू॒पम्। इन्द्रे॑। वयः॑। दध॑त्। व॒सु॒वन॒ इति॑ वसु॒ऽवने॑। व॒सु॒धेय॒स्येति॑ वसु॒ऽधेय॑स्य। वे॒तु॒। यज॑ ॥४२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देवो नराशँसो देवमिन्द्रँवयोधसन्देवो देवमवर्धयत् । विराजा च्छन्दसेन्द्रियँ रुपमिन्द्रे वयो दधद्वसुवने वसुधेयस्य वेतु यज ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    देवः। नराशꣳसः। देवम्। इन्द्रम्। वयोधसमिति वयःऽधसम्। देवः। देवम्। अवर्धयत्। विराजेति विऽराजा। छन्दसा। इन्द्रियम्। रूपम्। इन्द्रे। वयः। दधत्। वसुवन इति वसुऽवने। वसुधेयस्येति वसुऽधेयस्य। वेतु। यज॥४२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 28; मन्त्र » 42
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    भावार्थ -
    ( नराशंसः ) सब मनुष्यों से प्रशंसित, जनों का उपदेष्टा (देवः) उत्तम पदार्थों और ज्ञानों का देने हारा है, विद्वान् (देवम् ) विद्या के अभिलाषी पुरुष की ज्ञान से वृद्धि करता है वह विद्वान् ( वयोधसम् देवम् इन्द्रम् अवर्धयत् ) दीर्घजीवी, बल को धारण करने वाले, अन्नदाता राजा इन्द्र की वृद्धि करता है । (विराजा छन्दसा ) विराट छन्द, अर्थात् विशेष कान्तिजनक ज्ञान से (इन्द्रे) राजा और राष्ट्र में (इन्द्रियं रूपम् वयः दधत् ) इन्द्र पद के योग्य रूप और बल को धारण कराता है । वह भी (वसुधेयस्य ० ) पूर्ववत् ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - इन्द्रः । निचृदतिजगती । निषादः ॥

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