Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 29/ मन्त्र 51
    ऋषिः - भारद्वाज ऋषिः देवता - महावीरः सेनापतिर्देवता छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    0

    अहि॑रिव भो॒गैः पर्ये॑ति बा॒हुं ज्याया॑ हे॒तिं प॑रि॒बाध॑मानः।ह॒स्त॒घ्नो विश्वा॑ व॒युना॑नि वि॒द्वान् पुमा॒न् पुमा॑सं॒ परि॑ पातु वि॒श्वतः॑॥५१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अहि॑रि॒वेत्यहिः॑ऽइव। भो॒गैः। परि॑। ए॒ति॒। बा॒हुम्। ज्यायाः॑। हे॒तिम्। प॒रि॒बाध॑मान॒ इति॑ परि॒ऽबाध॑मानः। ह॒स्त॒घ्न इति॑ हस्त॒ऽघ्नः। विश्वा॑। व॒युना॑नि। वि॒द्वान्। पुमा॑न्। पुमां॑सम्। परि॑। पा॒तु॒। वि॒श्वतः॑ ॥५१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अहिरिव भोगैः पर्येति बाहुञ्ज्याया हेतिम्परिबाधमानः । हस्तघ्नो विश्वा वयुनानि विद्वान्पुमान्पुमाँसम्परिपातु विश्वतः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अहिरिवेत्यहिःऽइव। भोगैः। परि। एति। बाहुम्। ज्यायाः। हेतिम्। परिबाधमान इति परिऽबाधमानः। हस्तघ्न इति हस्तऽघ्नः। विश्वा। वयुनानि। विद्वान्। पुमान्। पुमांसम्। परि। पातु। विश्वतः॥५१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 29; मन्त्र » 51
    Acknowledgment

    भावार्थ -
    (हस्तघ्नः) हाथ में बंधी डोरी के आघातों से बार-बार ताड़ित होने वाला हाथबन्द नामक कवच जिस प्रकार ( बाहुम् ) बाहु को (अहि: ईव भौगैः) सांप के समान अपने अंगों से (परि एति) बाहु पर चारों ओर से लिपट जाता है और (ज्यायाः) डोरी के ( हेतिम् ) आघात को ( परिबाधमानः) बचाता हुआ मनुष्य की रक्षा करता है उसी प्रकार (हस्तघ्नः) अपने हाथों से ही शस्त्रास्त्र चलाने में कुशल वीर पुरुष (भोगैः) अपने पालन करने वाले साधनों से (अहि: इव) मेघ के समान (परि एति) नगर को घेरता है ( बाहुम् ) पीड़ा देने वाले शत्रु को और (ज्याया व्हेतिम् ) डोरियों से फेंके गये बाण (परि बाधमानः) दूर से ही नष्ट करता हुआ (विश्वा वयुनानि) सब प्रकार के ज्ञानों और युद्ध कौशलों को जानने हारा (विद्वान् पुमान्) ज्ञानी पुरुष ( पुमांसम् ) नगरवासी जन को (विश्वतः ) सब प्रकारों से (परि पातु) रक्षा करे ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - महावीरः सेनापतिः । त्रिष्टुप् । धैवतः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top