Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 3/ मन्त्र 26
    ऋषिः - सुबन्धुर्ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - स्वराट् बृहती, स्वरः - मध्यमः
    1

    तं त्वा॑ शोचिष्ठ दीदिवः सु॒म्नाय॑ नू॒नमी॑महे॒ सखि॑भ्यः। स नो॑ बोधि श्रु॒धी हव॑मुरु॒ष्या णो॑ऽअघाय॒तः स॑मस्मात्॥२६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तम्। त्वा॒। शो॒चि॒ष्ठ। दी॒दि॒व॒ इति॑ दीदिऽवः। सु॒म्नाय॑। नू॒नम्। ई॒म॒हे॒। सखि॑भ्य॒ इति॒ सखि॑ऽभ्यः। सः। नः॒। बो॒धि॒। श्रु॒धि। हव॑म्। उ॒रु॒ष्य। नः॒। अ॒घा॒य॒त इत्य॑घऽयतः। स॒म॒स्मा॒त् ॥२६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तन्त्वा शोचिष्ठ दीदिवः सुम्नाय नूनमीमहे सखिभ्यः । स नो बोधि श्रुधी हवमुरुष्या णोऽ अधायतः समस्मात् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    तम्। त्वा। शोचिष्ठ। दीदिव इति दीदिऽवः। सुम्नाय। नूनम्। ईमहे। सखिभ्य इति सखिऽभ्यः। सः। नः। बोधि। श्रुधि। हवम्। उरुष्य। नः। अघायत इत्यघऽयतः। समस्मात्॥२६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 3; मन्त्र » 26
    Acknowledgment

    भावार्थ -

    हे ( शोचिष्ठ) ज्वालायुक्त अग्नि के तेज से अति देदीप्यमान ! हे ( दीदिवः ) प्रकाशयुक्त, तेजस्विन्! अग्ने ! राजन् ! ( नूनम् ) निश्चय से हमें ( तम् ) परम प्रसिद्ध ( त्वा ) तुझसे ( सखिभ्यः ) अपने मित्रों के लिये भी ( ईमहे ) याचना, प्रार्थना करते हैं । ( सः ) वह तू (नः) हमें हमारे अभिप्राय को जान, अथवा वह हमें ( बोधि ) ज्ञान प्राप्त करा और हमारे ( हवम् ) स्तुति और प्रार्थना को ( श्रुधि ) श्रवण कर । ( नः ) हम ( समस्मात् ) सब प्रकार के ( अघायतः ) पापाचारी, अत्याचार करने वाले हिंसक पुरुष से ( उरु ष्य) बचा। ईश्वर के पक्ष में स्पष्ट है । शत ० २।३।४।३१ ॥ 

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -

    अग्निः । स्वराड् बृहती । मध्यमः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top