Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 33/ मन्त्र 75
    ऋषिः - विश्वामित्र ऋषिः देवता - विद्वान् देवता छन्दः - निचृज्जगती स्वरः - निषादः
    1

    आ रोद॑सीऽअपृण॒दा स्व॑र्म॒हज्जा॒तं यदे॑नम॒पसो॒ऽअधा॑रयन्।सोऽअ॑ध्व॒राय॒ परि॑ णीयते क॒विरत्यो॒ न वाज॑सातये॒ चनो॑हितः॥७५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ। रोद॑सी॒ऽइति॒ रोद॑सी। अ॒पृ॒ण॒त्। आ। स्वः॑। म॒हत्। जा॒तम्। यत्। ए॒न॒म्। अ॒पसः॑। अधा॑रयन् ॥ सः। अ॒ध्व॒राय॑। परि॑। नी॒य॒ते॒। क॒विः। अत्यः॑। न। वाज॑सातये॒ऽइति॒ वाज॑ऽसातये। चनो॑हित॒ऽइति॒ चनः॑ऽहितः ॥७५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ रोदसीऽअपृणदा स्वर्महज्जातन्यदेनमपसोऽअधारयन् । सोऽअध्वराय परिणीयते कविरत्यो न वाजसातये चनोहितः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    आ। रोदसीऽइति रोदसी। अपृणत्। आ। स्वः। महत्। जातम्। यत्। एनम्। अपसः। अधारयन्॥ सः। अध्वराय। परि। नीयते। कविः। अत्यः। न। वाजसातयेऽइति वाजऽसातये। चनोहितऽइति चनःऽहितः॥७५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 33; मन्त्र » 75
    Acknowledgment

    भावार्थ -
    सूर्य प्रकाश से आकाश और पृथिवी दोनों को व्याप लेता हैं उसी प्रकार तेजस्वी विद्वान्, पुरुष ( रोदसी) शास्य और शासक दोनों वर्गों को ( आ अपुणत् ) व्यापता और उनको पालन और पूर्ण भी करता है । वह (स्व:) अन्तरिक्ष को वायु के समान, ( महत् जातम् ) उत्पन्न हुए सुखमय बड़े राष्ट्र को भी वश करता है । (यत्) जिससे ( एनम् ) उसको (अपसः) समस्त कर्म, अथवा कार्य करने वाला प्रजाजन ( अधारयन् ) धारण करते हैं, वह सब कर्मों का आश्रय हो जाता है । (सः) उसको (कविः)क्रान्तदर्शी, दूरदर्शी पुरुष (अध्वराय) नष्ट न होने वाले, हिंसारहित, पालन करने के उत्तम कर्म के लिये (वाजसातये अत्य: न), संग्राम, ऐश्वर्य और वेगयुक्त कार्य करने के लिये अश्व के समान (परिणीयते) नियुक्त किया जाता है, वरण किया जाता है । वह (चनोहितः) अन्न आदि ऐश्वर्य को धारण करने वाला होता है । (२) अग्नि के पक्ष में- सूर्य रूप से द्यौ और पृथिवी को व्यापता, पोषता है । समस्त कर्मों को धारण करता है । हिंसारहित शिल्पों में और अश्व के समान यन्त्रों में भी वेग प्राप्त करने के लिये लगाया जाता है। (३) परमेश्वर भी सर्वत्र व्यापक, सबका पोषक है । समस्त कर्मो आश्रय है, वह क्रान्तदर्शी महान् यज्ञ के लिये पुनः-पुनः उपासना किया जाता एवं समस्त ऐश्वर्यो का पोषक है ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - विश्वामित्र ऋषिः । विद्वान् वैश्वानरो देवता । निचृत् जगती । निषादः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top