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  • यजुर्वेद - अध्याय 34/ मन्त्र 16
    ऋषिः - नोधा ऋषिः देवता - इन्द्रो देवता छन्दः - विराट् त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    प्र म॑न्महे शवसा॒नाय॑ शू॒षमा॑ङ्गू॒षं गिर्व॑णसेऽअङ्गिर॒स्वत्।सु॒वृ॒क्तिभिः॑ स्तुव॒तऽऋ॑ग्मि॒यायार्चा॑मा॒र्कं नरे॒ विश्रु॑ताय॥१६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र। म॒न्म॒हे॒। श॒व॒सा॒नाय॑। शू॒षम्। आ॒ङ्गू॒षम्। गिर्व॑णसे। अ॒ङ्गि॒र॒स्वत् ॥ सु॒वृ॒क्तिभि॒रिति॑ सुवृ॒क्तिऽभिः॑ स्तु॒व॒ते। ऋ॑ग्मियाय॑। अर्चा॑म। अ॒र्कम्। नरे॑। विश्रु॑ता॒येति॒ विऽश्रु॑ताय ॥१६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रम्मन्महे शवसानाय शूषमाङ्गूषङ्गिर्वणसेऽअङ्गिरस्वत् । सुवृक्तिभि स्तुवतऽऋग्मियायार्चामार्कन्नरे विश्रुताय ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    प्र। मन्महे। शवसानाय। शूषम्। आङ्गूषम्। गिर्वणसे। अङ्गिरस्वत्॥ सुवृक्तिभिरिति सुवृक्तिऽभिः स्तुवते। ऋग्मियाय। अर्चाम। अर्कम्। नरे। विश्रुतायेति विऽश्रुताय॥१६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 34; मन्त्र » 16
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    भावार्थ -
    हम लोग ( शवसानाय ) दुष्टों के नाशक बल वृद्धि चाहने वाले (गिर्वणसे) समस्त स्तुतियों के पात्र ( अंगिरस्वत् ) वायु सूर्य और अग्नि के समान तेजस्वी, बलवान् (सुवृक्तिभिः) उत्तम शत्रुओं का वर्जन करने वाली शक्तियों से (स्तुवते) स्तुतियोग्य (ऋग्मियाय) विद्वान्, (विश्रुताय ) विविध शौर्य आदि गुणों द्वारा प्रख्यात, (नरे) नायक के ( शूपम् ) बल और (आहूपम्) घोषणा करने का अधिकार या यशोवृद्धि को (प्रमन्महे ) अच्छी प्रकार चाहें और (सुवृक्तिभिः) उत्तम रीति से हृदय को खींचने वाली और पापनाशक ज्ञान वाणियों से (स्तुवते ) शास्त्र के सिद्धान्तों का प्रवचन करने वाले ( ऋग्मियाय) स्तुतियोग्य एवं वेदमन्त्रों के ज्ञाता, ( विश्रुताय) विविध विद्याओं में प्रसिद्ध विद्वान् के ( अर्कम् ) स्तुति योग्य ज्ञान का (अर्चाम) आदर करें। (२) परमेश्वर के पक्ष में – विज्ञान के प्राप्त करने के लिये सर्व स्तुति योग्य प्राण के समान सर्व जीवनाधार, ज्ञानी, स्तुति योग्य, प्रसिद्ध परमेश्वर के बलकारी वेदमय आघोषरूप मन्त्रों या स्तुति योग्य स्वरूप की स्तुति करें और उसका विचार और चिन्तन करें ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - [ १६-१७ ] नोधा ऋषिः । इन्द्रो देवता । विराट् त्रिष्टुप् । धैवतः ॥

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