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  • यजुर्वेद - अध्याय 38/ मन्त्र 5
    ऋषिः - दीर्घतमा ऋषिः देवता - वाग्देवता छन्दः - निचृदतिजगती स्वरः - निषादः
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    यस्ते॒ स्तनः॑ शश॒यो यो म॑यो॒भूर्यो र॑त्न॒धा व॑सु॒विद्यः सु॒दत्रः॑।येन॒ विश्वा॒ पुष्य॑सि॒ वार्य्या॑णि॒ सर॑स्वति॒ तमि॒ह धात॑वेऽकः।उ॒र्वन्तरि॑क्ष॒मन्वे॑मि॥५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यः। ते॒। स्तनः॑। श॒श॒यः। यः। म॒यो॒भूरिति॑ मयः॒ऽभूः। यः॒। र॒त्न॒धा इति॑ रत्न॒ऽधाः। व॒सु॒विदिति॑ वसु॒ऽवित्। यः। सु॒दत्र॒ इति॑ सु॒ऽदत्रः॑ ॥ येन॑। विश्वा॑। पुष्य॑सि। वार्य्या॑णि। सर॑स्वति। तम्। इ॒ह। धात॑वे। अ॒क॒रित्य॑कः। उ॒रु। अ॒न्तरि॑क्षम्। अनु॑। ए॒मि॒ ॥५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यस्ते स्तनः शशयो यो मयोभूर्या रत्नधा वसुविद्यः सुदत्रः । येन विश्वा पुष्यसि वार्याणि सरस्वत्तमिह धातवे कः । उर्वन्तरिक्षमन्वेमि ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    यः। ते। स्तनः। शशयः। यः। मयोभूरिति मयःऽभूः। यः। रत्नधा इति रत्नऽधाः। वसुविदिति वसुऽवित्। यः। सुदत्र इति सुऽदत्रः॥ येन। विश्वा। पुष्यसि। वार्य्याणि। सरस्वति। तम्। इह। धातवे। अकरित्यकः। उरु। अन्तरिक्षम्। अनु। एमि॥५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 38; मन्त्र » 5
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    भावार्थ -
    हे ( सरस्वति) सरस्वति ! उत्तम ज्ञानवान् पुरुषों एवं ज्ञानों से युक्त राजसभे ! (स्तन) माता का स्तन जिस प्रकार (शशय:) बालक को सुख की नींद सुलाने वाला, ( मयोभूः ) सुखजनक ( रत्नधा ) उत्तम ज्ञान और बल का दाता एवं रम्य, बालक का पोषक, (वसुवित्) प्राणों को प्राप्त कराने वाला है और जिससे समस्त (वार्याणि) वरण करने योग्य' गुणों और बलों को माता पुष्ट करती है उसी प्रकार (ते) तेरा (स्तन) उत्तम दुग्ध के समान मधुर ज्ञानो देश प्रदान करने वाला पुरुष, सभापति ( शशवः) प्रजा को सुख शान्ति से रखने वाला है (यः) जो (मयोभूः) प्रजा के कल्याण, सुख को उत्पन्न करता है, (य: रक्षा) जो रमण योग्य उत्तम गुणों और ऐश्वर्यों और उत्तम नररत्नों का पालन-पोषण करता है, ( यः वसुवित् ) जो वसु नामक ब्रह्मचारियों को आचार्य के समान, विद्वानों को प्राप्त करता, या राष्ट्र में बसने वाले उत्तम प्रजाजनों को ऐश्वर्य प्राप्त कराने हारा है और जो (सुदनः) उत्तम दानशील है (येन) जिससे तू राजसभा (विश्वा) समस्त (वार्याणि) वरण करने योग्य, वाञ्छनीय ऐश्वर्यो, कार्यों और राज्यांगों को (पुण्यसि) पुष्ट करती है (तम् ) उस 'स्तन' - अर्थात् ज्ञानोपदेष्टा विद्वान् पुरुष को (इह ) इस राष्ट्र में (धात) प्रजा को धारण, पालन-पोषण करने के लिये (अकः) नियुक्त कर । (उरु) मैं विशाल (अन्तरिक्षम् ) अन्तरिक्ष आकाश का ( अनु एमि ) अनुयायी होऊं, उसका अनुकरण करूं । मैं नियुक्त विद्वान् भी अन्तरिक्ष, मेघ के समान ज्ञान और ऐश्वर्य की धाराओं से वर्षा कर प्रजा को पुष्ट करूं । सरस्वती वेद वाणी का उपदेष्टा आचार्य, सरस्वती का उपदेश करने से उसका 'स्तन' है । वह बालक के समान शिष्य को शान्तिप्रद, सुखजनक, उत्तम ज्ञानपोषक वसु ब्रह्मचर्य द्वारा प्राणों को पुष्ट करता, उत्तम ज्ञान दान करता है, उससे ही सब प्राप्य ज्ञानों और वीर्यों को पुष्ट करता है । आचार्य भी अन्तरिक्षगत मेघ के समान शिष्यों पर ज्ञानवर्षण करे । मेघ के समान आचार्य प्रजापति का वर्णन देखो बृहदारण्यक उप० । ( ३ ) गृहस्थपक्ष में-पुरुष अन्तरिक्ष के समान पुत्रादि पर अनुग्रहकारी एवं स्त्री का भरणपोषणकारी हो । 'स्तन : ' – ष्टन वन शब्दे । भ्वादि: । स्तन गदी देवशब्दे । चुरादिः स्तनतीति स्तनः आचार्यो विद्वान् आज्ञापकः । स्तनयतीति स्तनः मेघः ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - दीर्घतमा । वाग् देवता । निचृदतिजगती । निषादः ॥

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