ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 11/ मन्त्र 9
श्रु॒धी नो॑ अग्ने॒ सद॑ने स॒धस्थे॑ यु॒क्ष्वा रथ॑म॒मृत॑स्य द्रवि॒त्नुम् । आ नो॑ वह॒ रोद॑सी दे॒वपु॑त्रे॒ माकि॑र्दे॒वाना॒मप॑ भूरि॒ह स्या॑: ॥
स्वर सहित पद पाठश्रु॒धि । नः॒ । अ॒ग्ने॒ । सद॑ने । स॒धऽस्थे॑ । यु॒क्ष्व । रथ॑म् । अ॒मृत॑स्य । द्र॒वि॒त्नुम् । आ । नः॒ । व॒ह॒ । रोद॑सी॒ इति॑ । दे॒वपु॑त्रे॒ इति॑ दे॒वऽपु॑त्रे । माकिः॑ । दे॒वाना॑म् । अप॑ । भूः॒ । इ॒ह । स्याः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
श्रुधी नो अग्ने सदने सधस्थे युक्ष्वा रथममृतस्य द्रवित्नुम् । आ नो वह रोदसी देवपुत्रे माकिर्देवानामप भूरिह स्या: ॥
स्वर रहित पद पाठश्रुधि । नः । अग्ने । सदने । सधऽस्थे । युक्ष्व । रथम् । अमृतस्य । द्रवित्नुम् । आ । नः । वह । रोदसी इति । देवपुत्रे इति देवऽपुत्रे । माकिः । देवानाम् । अप । भूः । इह । स्याः ॥ १०.११.९
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 11; मन्त्र » 9
अष्टक » 7; अध्याय » 6; वर्ग » 10; मन्त्र » 4
अष्टक » 7; अध्याय » 6; वर्ग » 10; मन्त्र » 4
पदार्थ -
(अग्ने) हे ज्ञानप्रकाशक परमात्मन् ! (सधस्थे सदने) हमारे तुम्हारे समागम के सहस्थान-हदय में (नः श्रुधि) हमारे प्रार्थनावचन को सुन-स्वीकार कर (अमृतस्य द्रवित्नुं रथं युक्ष्व) अमृत-आनन्द के द्रवित करने-रिसानेवाले अपने रमणीय स्वरूप को मेरे में युक्त कर (देवपुत्रे रोदसी नः आवह) तुझ परमात्मदेव की पुत्रियों-सृष्टि और मुक्ति अभ्युदय निःश्रेयस साधनेवाली को हमारे लिये प्राप्त करा (देवानां माकिः-अपभूः) हम देवों-आस्तिक मनस्वी जनों में से कोई भी अभ्युदय और निःश्रेयस से पृथक् न हो-वञ्चित न हो (इह स्याः) वैसे तू यहाँ हदय में साक्षात् हो ॥९॥
भावार्थ - आस्तिक मनवाले उपासक जन की प्रार्थना को परमात्मा सुनता-स्वीकार करता है। जब कोई हदय में श्रद्धा और ध्यान द्वारा परमात्मा का स्मरण करता है, वह अभ्युदय और निःश्रेयस को प्राप्त करता है, कोई भी आस्तिक मनवाला अभ्युदय निःश्रेयस से वञ्चित नहीं रहता है ॥९॥
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