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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 140 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 140/ मन्त्र 6
    ऋषिः - अग्निः पावकः देवता - अग्निः छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    ऋ॒तावा॑नं महि॒षं वि॒श्वद॑र्शतम॒ग्निं सु॒म्नाय॑ दधिरे पु॒रो जना॑: । श्रुत्क॑र्णं स॒प्रथ॑स्तमं त्वा गि॒रा दैव्यं॒ मानु॑षा यु॒गा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ऋ॒तऽवा॑नम् । म॒हि॒षम् । वि॒श्वऽद॑र्शतम् । अ॒ग्निम् । सु॒म्नाय॑ । द॒धि॒रे॒ । पु॒रः । जनाः॑ । श्रुत्ऽक॑र्णम् । स॒प्रथः॑ऽतमम् । त्वा॒ । गि॒रा । दैव्य॑म् । मानु॑षा । यु॒गा ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ऋतावानं महिषं विश्वदर्शतमग्निं सुम्नाय दधिरे पुरो जना: । श्रुत्कर्णं सप्रथस्तमं त्वा गिरा दैव्यं मानुषा युगा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ऋतऽवानम् । महिषम् । विश्वऽदर्शतम् । अग्निम् । सुम्नाय । दधिरे । पुरः । जनाः । श्रुत्ऽकर्णम् । सप्रथःऽतमम् । त्वा । गिरा । दैव्यम् । मानुषा । युगा ॥ १०.१४०.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 140; मन्त्र » 6
    अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 28; मन्त्र » 6

    पदार्थ -
    (ऋतावानम्) सत्यज्ञानवाले (महिषम्) महान् (विश्वदर्शतम्) सब के दर्शनीय (अग्निम्) अग्नि परमात्मा को (सुम्नाय) सुखप्राप्ति के लिए (जनः) मनुष्य (पुरः-दधिरे) सर्वप्रथम सर्व कार्यों के प्रथम प्रारम्भ में धारण करते हैं ध्यान में लाते हैं (श्रुत्कर्णम्) श्रवण के लिए कर्ण शक्तिवाले (सप्रथस्तमम्) सप्रख्यात यशवाले (दैव्यम्) जीवन्मुक्तों के लिए हितकर (त्वा) तुझ परमात्मा को (मानुषा युगा) मनुष्यसम्बन्धी युगल स्त्री-पुरुष (गिरा) स्तुति द्वारा तेरी स्तुति करते हैं ॥६॥

    भावार्थ - परमात्मा महान् और सत्य ज्ञानवाला है, सब मनुष्यों के द्वारा अध्यात्मदृष्टि से देखने योग्य है, सुखप्राप्ति के लिए सब कार्यों के प्रथम परमात्मा का ध्यान या स्तवन करते हैं, जीवन्मुक्त आत्माओं के हितकर परमात्मा की सब स्त्री-पुरुषों को स्तुति करनी चाहिये ॥६॥

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