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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 165 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 165/ मन्त्र 1
    ऋषिः - कपोतो नैर्ऋतः देवता - कपोतापहतौप्रायश्चित्तं वैश्वदेवम् छन्दः - स्वराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    देवा॑: क॒पोत॑ इषि॒तो यदि॒च्छन्दू॒तो निॠ॑त्या इ॒दमा॑ज॒गाम॑ । तस्मा॑ अर्चाम कृ॒णवा॑म॒ निष्कृ॑तिं॒ शं नो॑ अस्तु द्वि॒पदे॒ शं चतु॑ष्पदे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    देवाः॑ । क॒पोतः॑ । इ॒षि॒तः । यत् । इ॒च्छन् । दू॒तः । निःऽऋ॑त्याः । इ॒दम् । आ॒ऽज॒गाम॑ । तस्मै॑ । अ॒र्चा॒म॒ । कृ॒णवा॑म । निःऽकृ॑तिम् । शम् । नः॒ । अ॒स्तु॒ । द्वि॒ऽपदे॑ । शम् । चतुः॑ऽपदे ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देवा: कपोत इषितो यदिच्छन्दूतो निॠत्या इदमाजगाम । तस्मा अर्चाम कृणवाम निष्कृतिं शं नो अस्तु द्विपदे शं चतुष्पदे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    देवाः । कपोतः । इषितः । यत् । इच्छन् । दूतः । निःऽऋत्याः । इदम् । आऽजगाम । तस्मै । अर्चाम । कृणवाम । निःऽकृतिम् । शम् । नः । अस्तु । द्विऽपदे । शम् । चतुःऽपदे ॥ १०.१६५.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 165; मन्त्र » 1
    अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 23; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    (देवाः) हे संग्राम जीतने के इच्छुक विद्वानों ! (इषितः) दूसरों से प्रेरित हुआ भेजा हुआ (कपोतः-दूतः) भाषा वेश की दृष्टि से विविध रंगवाला विचित्रभाषी सन्देशवाहक अथवा हमारे द्वारा भेजा हुआ दूत (यत्-इच्छन्) जिस वृत्त को सूचित करने की इच्छा रखता हुआ (निर्ऋत्याः) परभूमि से-सीमा से तथा अपनी भूमि से (इदम्-आ जगाम) इस स्थान को प्राप्त हुआ है (तस्मै-अर्चाम) उसके लिए सत्कार करते हैं (निष्कृतिं-कृणवाम) उसका प्रतिकार या समाधान करें (नः) हमारे (द्विपदे शम्) दो पैरवाले मनुष्यादि के लिये कल्याण हो (चतुष्पदे-शम्-अस्तु) हमारे चार पैरवाले पशु के लिए कल्याण हो ॥१॥

    भावार्थ - संग्राम को जीतने के इच्छुक विद्वान् लोग संग्राम से पूर्व परराष्ट्र भूमि से आये दूत को अपने राष्ट्र की भूमि से प्रस्थान करनेवाले दूत को, जो किसी विशेष सन्देश को सुनाने के लिए आता है या सुनाने के लिए जाता है, उसका सत्कार करना चाहिये ॥१॥

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