साइडबार
ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 188/ मन्त्र 2
अ॒स्य प्र जा॒तवे॑दसो॒ विप्र॑वीरस्य मी॒ळ्हुष॑: । म॒हीमि॑यर्मि सुष्टु॒तिम् ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒स्य । प्र । जा॒तऽवे॑दसः । विप्र॑ऽवीरस्य । मी॒ळ्हुषः॑ । म॒हीम् । इ॒य॒र्मि॒ । सु॒ऽस्तु॒तिम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
अस्य प्र जातवेदसो विप्रवीरस्य मीळ्हुष: । महीमियर्मि सुष्टुतिम् ॥
स्वर रहित पद पाठअस्य । प्र । जातऽवेदसः । विप्रऽवीरस्य । मीळ्हुषः । महीम् । इयर्मि । सुऽस्तुतिम् ॥ १०.१८८.२
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 188; मन्त्र » 2
अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 46; मन्त्र » 2
अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 46; मन्त्र » 2
पदार्थ -
(अस्य) इस (जातवेदसः) पूर्वोक्त परमात्मा या अग्नि (विप्रवीरस्य) मेधावी प्राप्त करनेवाला जिसका है, उस ऐसे (मीढुषः) सुख सींचनेवाले की (महीं स्तुतिम्) महती स्तुति या प्रशंसा को (इयर्मि) प्रेरित करता हूँ या प्रशंसा करता हूँ ॥२॥
भावार्थ - मेधावी द्वारा प्राप्त होनेवाले सुखवर्षक परमात्मा की महती स्तुति करनी चाहिए तथा अग्नि का उपयोग कर लाभ लेना चाहिये ॥२॥
इस भाष्य को एडिट करें