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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 29 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 29/ मन्त्र 1
    ऋषिः - वसुक्रः देवता - इन्द्र: छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    वने॒ न वा॒ यो न्य॑धायि चा॒कञ्छुचि॑र्वां॒ स्तोमो॑ भुरणावजीगः । यस्येदिन्द्र॑: पुरु॒दिने॑षु॒ होता॑ नृ॒णां नर्यो॒ नृत॑मः क्ष॒पावा॑न् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वने॑ । न । वा॒ । यः । नि । अ॒धा॒यि॒ । चा॒कन् । शुचिः॑ । वा॒म् । स्तोमः॑ । भु॒र॒णौ॒ । अ॒जी॒ग॒रिति॑ । यस्य॑ । इत् । इन्द्रः॑ । पु॒रु॒ऽदिने॑षु । होता॑ । नृ॒णाम् । नर्यः॑ । नृऽत॑मः । क्ष॒पाऽवा॑न् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वने न वा यो न्यधायि चाकञ्छुचिर्वां स्तोमो भुरणावजीगः । यस्येदिन्द्र: पुरुदिनेषु होता नृणां नर्यो नृतमः क्षपावान् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वने । न । वा । यः । नि । अधायि । चाकन् । शुचिः । वाम् । स्तोमः । भुरणौ । अजीगरिति । यस्य । इत् । इन्द्रः । पुरुऽदिनेषु । होता । नृणाम् । नर्यः । नृऽतमः । क्षपाऽवान् ॥ १०.२९.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 29; मन्त्र » 1
    अष्टक » 7; अध्याय » 7; वर्ग » 22; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    (वने न नि-अधायि वायः) वन में रहे पक्षीशिशु के समान (भुरणौ चाकन्) भरण करनेवाले-पोषण करनेवाले अपने माता-पिताओं को देखता हुआ या चाहता हुआ अथवा उसकी ओर जाता हुआ या बचपन के सौन्दर्य से दिव्यपान जैसे होता है, ऐसा (शुचिः स्तोमः-अजीगः) पवित्रकारक स्तुति-समूह-मन्त्रगण-वेद अग्नि आदि परम षियों के अन्दर प्रसिद्ध हुआ, भरण करनेवाले हे अध्यापक और अध्येता ! (वाम्) तुम्हारे लिये प्राप्त हुआ (यस्य-इन्द्रः क्षपावान्) जिस मन्त्रगण-वेद का प्रकाशक परमात्मा प्रलयस्वामी प्रलय में भी वर्तमान-प्रलय के अनन्तर (पुरुदिनेषु होता) बहुत दिनों तक के निमित्त प्रलयपर्यन्त तक प्रदान करनेवाला है, वह (नृणां नृतमः-नर्यः) समस्त जीवन के नेताओं में अत्यन्त नेता मनुष्यों के लिये हितकर-कल्याणकारक उपासनीय है ॥१॥

    भावार्थ - प्रलय के अनन्तर अग्नि आदि षियों के अन्दर हितैषी परमात्मा के द्वारा प्रसिद्ध हुआ वेद प्रलयपर्यन्त मनुष्यों के कल्याणार्थ अध्यापक और पढ़ानेवाले के द्वारा पोषणीय-रक्षणीय है। वह परमात्मा उपासनीय है ॥१॥

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