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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 30 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 30/ मन्त्र 15
    ऋषिः - कवष ऐलूषः देवता - आप अपान्नपाद्वा छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    आग्म॒न्नाप॑ उश॒तीर्ब॒र्हिरेदं न्य॑ध्व॒रे अ॑सदन्देव॒यन्ती॑: । अध्व॑र्यवः सुनु॒तेन्द्रा॑य॒ सोम॒मभू॑दु वः सु॒शका॑ देवय॒ज्या ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । अ॒ग्म॒न् । आपः॑ । उ॒श॒तीः । ब॒र्हिः । आ । इ॒दम् । नि । अ॒ध्व॒रे । अ॒स॒द॒न् । दे॒व॒ऽयन्तीः॑ । अध्व॑र्यवः । सु॒नु॒त । इन्द्रा॑य । सोम॑म् । अभू॑त् । ऊँ॒ इति॑ । वः॒ । सु॒ऽशका॑ । दे॒व॒ऽय॒ज्या ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आग्मन्नाप उशतीर्बर्हिरेदं न्यध्वरे असदन्देवयन्ती: । अध्वर्यवः सुनुतेन्द्राय सोममभूदु वः सुशका देवयज्या ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । अग्मन् । आपः । उशतीः । बर्हिः । आ । इदम् । नि । अध्वरे । असदन् । देवऽयन्तीः । अध्वर्यवः । सुनुत । इन्द्राय । सोमम् । अभूत् । ऊँ इति । वः । सुऽशका । देवऽयज्या ॥ १०.३०.१५

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 30; मन्त्र » 15
    अष्टक » 7; अध्याय » 7; वर्ग » 26; मन्त्र » 5

    पदार्थ -
    (अध्वरे) राजसूययज्ञ में (उशतीः-देवयन्तीः-आपः) सुख की कामना करती हुई तथा सुखदाता राजा को अपने ऊपर शासनकर्ता चाहनेवाली प्रजाएँ (आ-अग्मन्) आती हैं और (इदं बर्हिः-नि-असदन्) इस यज्ञमण्डप को प्राप्त होती हैं (अध्वर्यवः) हे राजसूययज्ञ के नेता विद्वानों ! तुम (इन्द्राय) राजा के लिये (सोमं सुनुत) राजैश्वर्यपद को सम्पन्न करो (वः-देवयज्या सुशका-अभूत्) तुम्हारे सुखदाता राजा का यज्ञ प्रजा के सहयोग से सुगमतापूर्वक कर सकना सम्भव है ॥१५॥

    भावार्थ - प्रजाएँ अपने ऊपर सुखदाता शासनकर्ता राजा को चाहती हैं। वे राजसूययज्ञ में विराजें और ऋत्विज् लोग राजसूययज्ञ को चलाते हुए प्रजा के सहयोग से राजा के राज्यैश्वर्य पद को सम्पन्न करें ॥१५॥

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