अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 31/ मन्त्र 1
सूक्त - ब्रह्मास्कन्दः
देवता - मन्युः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - सेनानिरीक्षण सूक्त
त्वया॑ मन्यो स॒रथ॑मारु॒जन्तो॒ हर्ष॑माणा हृषि॒तासो॑ मरुत्वन्। ति॒ग्मेष॑व॒ आयु॑धा सं॒शिशा॑ना॒ उप॒ प्र य॑न्तु॒ नरो॑ अ॒ग्निरू॑पाः ॥
स्वर सहित पद पाठत्वया॑ । म॒न्यो॒ इति॑ । स॒ऽरथ॑म् । आ॒ऽरु॒जन्त॑: । हर्ष॑माणा: । हृ॒षि॒तास॑: । म॒रु॒त्व॒न् । ति॒ग्मऽइ॑षव: । आयु॑धा । स॒म्ऽशिशा॑ना: । उप॑ । प्र । य॒न्तु॒ । नर॑: । अ॒ग्निऽरू॑पा: ॥३१.१॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वया मन्यो सरथमारुजन्तो हर्षमाणा हृषितासो मरुत्वन्। तिग्मेषव आयुधा संशिशाना उप प्र यन्तु नरो अग्निरूपाः ॥
स्वर रहित पद पाठत्वया । मन्यो इति । सऽरथम् । आऽरुजन्त: । हर्षमाणा: । हृषितास: । मरुत्वन् । तिग्मऽइषव: । आयुधा । सम्ऽशिशाना: । उप । प्र । यन्तु । नर: । अग्निऽरूपा: ॥३१.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 31; मन्त्र » 1
विषय - मन्यु, सेनानायक, आत्मा।
भावार्थ -
मन्युस्तापस ऋषिः। मन्युर्देवता। हे मन्यो ! अर्थात् मन्युमय सेनानायक ! तथा हे (मरुत्वन्) योद्धाओं समेत ! (स्वया) तुझ सहायक के साथ (स-रथम्) रथ सहित शत्रु को (आ-रुजन्तः) पीड़ित एवं भग्न, विनष्ट करते हुए (हर्षमाणाः) हर्ष, आनन्द, प्रसन्नता प्रकट करते हुए (हृषितासः) स्वयं हृष्ट प्रसन्न होकर (आयुधा सं-शि-शानाः) अपने हथियारों को तीखा करते हुए (तिग्म-इषवः) तीक्ष्ण बाणों वाले (अग्निरूपाः) आग के समान जाज्वल्यमान (नरः) नेता, भट-गण (उप प्र यन्तु) शत्रु तक पहुंच जायं।
अध्यात्म पक्ष में—हे मन्यो = ज्ञानवान्, मरुत्वन् = सर्व प्राणों के स्वामिन् ! परमेश्वर ! तुझ सहायक के होते हुए अग्नि रूप ज्ञानी जीव शमदमादि तीन साधनों को करते हुए तीक्ष्ण इषु अर्थात् कामना, प्रबल इच्छा वाले होकर (हर्षमाणाः हृषितासः) स्वयं प्रसन्न आनन्दमग्न होकर रथ रूप देह सहित इस बन्धन को तोड़ कर, मुक्त होकर तुझे प्राप्त करें।
टिप्पणी -
अध्यात्म युद्ध का वर्णन भक्तों की वाणियों में बहुत है, जैसे कबीर कहते हैं:-
एक शमशेर, इकसार चलती रहे, खेल कोई सूरमा सन्त झेलै।
कामदल जीत करि, क्रोध पैमाल करि, परम सुखधाम तहं सुरत मेलै॥
शील से नेह करि, ज्ञान को खड्ग है, आप चौगान में खेल खेले।
कहे कबीर, सोई संतजन सूरमा, सीस को सौंप करि करम ठेलै। रेखता २६॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ब्रह्मास्कन्द ऋषिः। मन्युर्देवता। १, ३ त्रिष्टुभौ। २, ४ भुरिजौ। ५- ७ जगत्यः। सप्तर्चं सूक्तम्॥
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