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अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 103/ मन्त्र 1
सूक्त - उच्छोचन
देवता - इन्द्राग्नी
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
सं॒दानं॑ वो॒ बृह॒स्पतिः॑ सं॒दानं॑ सवि॒ता क॑रत्। सं॒दानं॑ मि॒त्रो अ॑र्य॒मा सं॒दानं॒ भगो॑ अ॒श्विना॑ ॥
स्वर सहित पद पाठस॒म्ऽदान॑म् । व॒: । बृह॒स्पति॑: । स॒म्ऽदान॑म् । स॒वि॒ता । क॒र॒त् । स॒म्ऽदान॑म् । मि॒त्र: । अ॒र्य॒मा । स॒म्ऽदान॑म् । भग॑: । अ॒श्विना॑ ॥१०३.१॥
स्वर रहित मन्त्र
संदानं वो बृहस्पतिः संदानं सविता करत्। संदानं मित्रो अर्यमा संदानं भगो अश्विना ॥
स्वर रहित पद पाठसम्ऽदानम् । व: । बृहस्पति: । सम्ऽदानम् । सविता । करत् । सम्ऽदानम् । मित्र: । अर्यमा । सम्ऽदानम् । भग: । अश्विना ॥१०३.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 103; मन्त्र » 1
विषय - राष्ट्र-रक्षा और शत्रु दमन।
भावार्थ -
(बृहस्पतिः) बृहस्पति (वः) तुम्हारा (संदानम्) बन्धन (करत) करे, (सविता संदानं करत्) सविता तुम्हारा बन्धन करे, (अर्यमा संदानम्) अर्यमा तुम्हारा बन्धन करे, (भगः अश्विनौ) भग और अश्वी दोनों तुम्हारा बन्धन करें।
बृहस्पति, सविता, मित्र, अर्यमा, भग, अश्वी ये सब राष्ट्र के अधिकारी लोग हैं। संग्राम छिड़ जाने पर सभी अधिकारी शत्रु के आदमियों पर विशेष विशेष बन्धन रोक टोक रक्खें, उन्हें पूरा पूरा वश में रक्खें।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - उच्छोचन ऋषिः। इन्द्राग्नी उत बहवो देवताः। अनुष्टुभः। तृचं सूक्तम्॥
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