ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 74/ मन्त्र 6
यद्वा॒वान॑ पुरु॒तमं॑ पुरा॒षाळा वृ॑त्र॒हेन्द्रो॒ नामा॑न्यप्राः । अचे॑ति प्रा॒सह॒स्पति॒स्तुवि॑ष्मा॒न्यदी॑मु॒श्मसि॒ कर्त॑वे॒ कर॒त्तत् ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । व॒वान॑ । पु॒रु॒ऽतम॑म् । पु॒रा॒षाट् । आ । वृ॒त्र॒ऽहा । इन्द्रः॑ । नामा॑नि । अ॒प्राः॒ । अचे॑ति । प्र॒ऽसहः॑ । पतिः॑ । तुवि॑ष्मान् । यत् । ई॒म् । उ॒श्मसि॑ । कर्त॑वे । कर॑त् । तत् ॥
स्वर रहित मन्त्र
यद्वावान पुरुतमं पुराषाळा वृत्रहेन्द्रो नामान्यप्राः । अचेति प्रासहस्पतिस्तुविष्मान्यदीमुश्मसि कर्तवे करत्तत् ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । ववान । पुरुऽतमम् । पुराषाट् । आ । वृत्रऽहा । इन्द्रः । नामानि । अप्राः । अचेति । प्रऽसहः । पतिः । तुविष्मान् । यत् । ईम् । उश्मसि । कर्तवे । करत् । तत् ॥ १०.७४.६
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 74; मन्त्र » 6
अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 5; मन्त्र » 6
अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 5; मन्त्र » 6
विषय - विद्युत् के तुल्य विजेता के कर्त्तव्य। प्रधानपद योग्य पुरुष।
भावार्थ -
जिस प्रकार (वृत्रहा इन्द्रः) वृत्र अर्थात् मेघ पर आघात करने वाला, मेघों में दौड़ने वाला विद्युत् (पुरु-तमम्) बहुत अधिक बढ़े हुए जल राशि को (ववान) आघात करता है और वह अनेक (नामानि अप्राः) जलों को भूमि पर पूर देता है, उसी प्रकार (वृत्र-हा इन्द्रः) विघ्नकारी, बढ़ते शत्रुओं को नाश करने वाला (पुरा-षाट्) शत्रु-पुरों को विजय करने वाला, विजेता, (पुरुतमं ववान) शत्रु के अनेकों में से श्रेष्ठ नायक का नाश करे। वह (नामानि अप्राः) शत्रुओं को नमाने वाले अनेक सैन्यादि साधनों को पूर्ण करे। वह (तुविष्मान्) बड़ा बलशाली पुरुष, (प्र-सहः पतिः) बड़े भारी शत्रु-विजयी सैन्य बल का स्वामी, अथवा (प्र-सहः) सब से उत्तम दुष्ट-दमनकारी, सरदार वा विजेता, और (पतिः) सबका स्वामी (अचेति) जाना जाय (यत्) जो हम प्रजाजन (कर्त्तवे उष्मसि) करना चाहें वह (तत् करत्) उसको कर दे। प्रजा की इच्छानुसार उसका दुःख मोचन करने में समर्थ पुरुष ही प्रधान पद पावे। इति पञ्चमो वर्गः॥
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - गौरिवीतिर्ऋषिः॥ इन्द्रो देवता। छन्दः- १, ४ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। २, ५ निचृत त्रिष्टुप्। ३ आर्ची भुरिक् त्रिष्टुप्। ६ विराट् त्रिष्टुप्॥
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