ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 81/ मन्त्र 5
ऋषिः - विश्वकर्मा भौवनः
देवता - विश्वकर्मा
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
या ते॒ धामा॑नि पर॒माणि॒ याव॒मा या म॑ध्य॒मा वि॑श्वकर्मन्नु॒तेमा । शिक्षा॒ सखि॑भ्यो ह॒विषि॑ स्वधावः स्व॒यं य॑जस्व त॒न्वं॑ वृधा॒नः ॥
स्वर सहित पद पाठया । ते॒ । धामा॑नि । प॒र॒माणि॑ । या । अ॒व॒मा । या । म॒ध्य॒मा । वि॒श्व॒ऽक॒र्म॒न् । उ॒त । इ॒मा । शिक्ष॑ । सखि॑ऽभ्यः । ह॒विषि॑ । स्व॒धा॒ऽवः॒ । स्व॒यम् । य॒ज॒स्व॒ । त॒न्व॑म् । वृ॒धा॒नः ॥
स्वर रहित मन्त्र
या ते धामानि परमाणि यावमा या मध्यमा विश्वकर्मन्नुतेमा । शिक्षा सखिभ्यो हविषि स्वधावः स्वयं यजस्व तन्वं वृधानः ॥
स्वर रहित पद पाठया । ते । धामानि । परमाणि । या । अवमा । या । मध्यमा । विश्वऽकर्मन् । उत । इमा । शिक्ष । सखिऽभ्यः । हविषि । स्वधाऽवः । स्वयम् । यजस्व । तन्वम् । वृधानः ॥ १०.८१.५
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 81; मन्त्र » 5
अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 16; मन्त्र » 5
अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 16; मन्त्र » 5
विषय - प्रभु का सर्वमेध यज्ञ सब जीवों को कर्मानुसार देह, सुख, कर्भ फलादि देना ही है। परमेश्वर के तीन धाम, तीन प्रकार के नाम।
भावार्थ -
हे (विश्व-कर्मन्) समस्त जगतों, भुवनों और समस्त प्राणियों को रचने वाले परमेश्वर ! (ते) तेरे बनाये (या परमाणि धामानि) जो परम, सर्वोत्कृष्ट, सब से उत्तम स्थान वा शरीर वा जो तेरे सर्वश्रेष्ठ नाम (या अवमा) और जो तेरे बनाये अति समीप, अपेक्षया निम्न स्थान वा निम्न कोटि के शरीर वा (अवमा) सामान्य नाम हैं (उत) और (या मध्यमा) जो मध्यम स्थान वा मध्यम कोटि के शरीर वा तेरे मध्यम नाम हैं तू (सखिभ्यः) ज्ञानवान् समदर्शी जनों वा मित्र जीवों रूप शिष्यों को (इमा) वे सब (शिक्ष) सिखा वा प्रदान कर। हे (स्वधावः) स्वयं जगत् को धारण-पोषणकारी शक्ति-सामर्थ्यों के स्वामिन् ! (स्वयम्) अपने आप (हविषि) अन्नादि से (वृधानः) बढ़ाता हुआ (तन्वं यजस्व) जीवों को देह प्रदान कर
अनेन धामत्रैविध्योपन्यासेन उत्तमभूतानि देवादिशरीराणि, मध्यम-भूतानि मनुष्यादिशरीराणि निकृष्टभूतानि कृमिकीटादिशरीराणि च परिगृहीतानि, किं बहुना सर्वं जगदुपात्तं भवति। सायणः॥
त्रयाणि धामानि भवन्ति स्थानानि नामानि जन्मानि चेति। निरु०॥ आकाश अन्तरिक्ष और पृथिवी ये तीन लोक, देव, मनुष्य, पशु कीट आदि ब्रह्मा से तृण तक शरीरों में जन्म और नाम, परमेश्वर के तीन प्रकार के नाम (१) परम, सर्वश्रेष्ठ ओम् आदि जिनका अन्तःस्तल से ध्यान किया जाय, जिनसे परमेश्वर के अनेक व्यापक गुणों का ज्ञान हो, (२) मध्यम, जिनसे कई एक गुणों का ज्ञान हो (३) अवम जिनसे केवल एक गुण का ही ज्ञान हो।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - विश्वकर्मा भौवनः॥ विश्वकर्मा देवता॥ छन्द:– १, ५, ६ विराट् त्रिष्टुप्। २ ४ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। ३, ७ निचृत् त्रिष्टुप्। सप्तर्चं सूक्तम्॥
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