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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 58 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 58/ मन्त्र 2
    ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा देवता - अश्विनौ छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    सु॒युग्व॑हन्ति॒ प्रति॑ वामृ॒तेनो॒र्ध्वा भ॑वन्ति पि॒तरे॑व॒ मेधाः॑। जरे॑थाम॒स्मद्वि प॒णेर्म॑नी॒षां यु॒वोरव॑श्चकृ॒मा या॑तम॒र्वाक्॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सु॒ऽयुक् । व॒ह॒न्ति॒ । प्रति॑ । वा॒म् । ऋ॒तेन॑ । ऊ॒र्ध्वा । भ॒व॒न्ति॒ । पि॒तरा॑ऽइव । मेधाः॑ । जरे॑थाम् । अ॒स्मत् । वि । प॒णेः । म॒नी॒षाम् । यु॒वोः । अवः॑ । च॒कृ॒म॒ । आ । या॒त॒म् । अ॒र्वाक् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सुयुग्वहन्ति प्रति वामृतेनोर्ध्वा भवन्ति पितरेव मेधाः। जरेथामस्मद्वि पणेर्मनीषां युवोरवश्चकृमा यातमर्वाक्॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सुऽयुक्। वहन्ति। प्रति। वाम्। ऋतेन। ऊर्ध्वा। भवन्ति। पितराऽइव। मेधाः। जरेथाम्। अस्मत्। वि। पणेः। मनीषाम्। युवोः। अवः। चकृम। आ। यातम्। अर्वाक्॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 58; मन्त्र » 2
    अष्टक » 3; अध्याय » 4; वर्ग » 3; मन्त्र » 2

    भावार्थ -
    (सुयुक् प्रति) जिस प्रकार रथ में जुड़े घोड़े (ऋतेन) गतिमान् रथ से (प्रति वहन्ति) मनुष्य या स्वामी को स्थानान्तर पर ले जाते हैं। उसी प्रकार (सुयुग्) उत्तम रीति से नियुक्त विद्वान् जन वा उत्तम वाणियें हे स्त्री पुरुषो ! (वाम् प्रति) तुम दोनों के प्रति (ऋतेन) सत्य के द्वारा (वहन्ति) ज्ञान प्राप्त करावें। (मेधाः) प्रजाएं और प्रज्ञावान् पुरुष (वाम् प्रति) तुम दोनों के प्रति (पितरा इव) माता पिता के समान ही (ऊर्ध्वाः) ऊपर, उच्च पद के योग्य, आदरणीय (भवन्ति) होते हैं। आप दोनों भी (अस्मत्) हमें (पणेः) व्यवहारकुशल और विद्वान् पुरुष की (मनीषाम्) विचारशील बुद्धि का (बि-जरेथाम्) विशेष २ और विविध २ उपदेश करो। हम लोग (युवोः) आप दोनों की (अवः) रक्षा और ज्ञान की वृद्धि करें वा आप दोनों के लिये तृप्ति- कारक प्रिय अन्न प्रदान करें। आप (अर्वाक् आयातम्) दोनों हमारे पास आइये।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - विश्वामित्र ऋषिः॥ अश्विनौ देवते॥ छन्दः– १, ८, ९ त्रिष्टुप्। २, ३, ४, ५, ७ निचृत्त्रिष्टुप्। ६ भुरिक् पंक्तिः॥ नवर्चं सूक्तम्॥

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