Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 13 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 13/ मन्त्र 6
    ऋषिः - सुतम्भर आत्रेयः देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    अग्ने॑ ने॒मिर॒राँ इ॑व दे॒वाँस्त्वं प॑रि॒भूर॑सि। आ राध॑श्चि॒त्रमृ॑ञ्जसे ॥६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अग्ने॑ । ने॒मिः । अ॒रान्ऽइ॑व । दे॒वान् । त्वम् । प॒रि॒ऽभूः । अ॒सि॒ । आ । राधः॑ । चि॒त्रम् । ऋ॒ञ्ज॒से॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्ने नेमिरराँ इव देवाँस्त्वं परिभूरसि। आ राधश्चित्रमृञ्जसे ॥६॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अग्ने। नेमिः। अरान्ऽइव। देवान्। त्वम्। परिऽभूः। असि। आ। राधः। चित्रम्। ऋञ्जसे ॥६॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 13; मन्त्र » 6
    अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 5; मन्त्र » 6

    भावार्थ -
    भा०- ( नेमिः अरान् इव परिभूः ) परिधि जिस प्रकार चक्र के अरों से सब ओर से लगी रहती है उसी प्रकार हे (अग्ने) विद्वन् ! राजन् ! प्रभो ! ( त्वं ) तू ( देवान् ) विद्या, धन आदि के इच्छुक जनों के ( परिभूः असिः ) ऊपर सब का रक्षक हो, तू ( चित्रम् राधः ) अद्भुत ऐश्वर्य ( आ ऋञ्ज से ) सब प्रकार से प्रदान करता है । इति पञ्चमो वर्गः ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - सुतम्भर आत्रेय ऋषिः ॥ अग्निर्देवता ॥ छन्द:- १, ४, ५ निचृद् गायत्री । २, ६ गायत्री । ३ विराङ्गायत्री ॥ षडचं सूक्तम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top