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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 43 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 43/ मन्त्र 17
    ऋषिः - अत्रिः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    सम॒श्विनो॒रव॑सा॒ नूत॑नेन मयो॒भुवा॑ सु॒प्रणी॑ती गमेम। आ नो॑ र॒यिं व॑हत॒मोत वी॒राना विश्वा॑न्यमृता॒ सौभ॑गानि ॥१७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सम् । अ॒श्विनोः॑ । अव॑सा । नूत॑नेन । म॒यः॒ऽभुवा॑ । सु॒ऽप्रनी॑ती । ग॒मे॒म॒ । आ । नः॒ । र॒यिम् । व॒ह॒त॒म् । आ । उ॒त । वी॒रान् । आ । विश्वा॑नि । अ॒मृ॒ता॒ । सौभ॑गानि ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    समश्विनोरवसा नूतनेन मयोभुवा सुप्रणीती गमेम। आ नो रयिं वहतमोत वीराना विश्वान्यमृता सौभगानि ॥१७॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सम्। अश्विनोः। अवसा। नूतनेन। मयःऽभुवा। सुऽप्रनीती। गमेम। आ। नः। रयिम्। वहतम्। आ। उत। वीरान्। आ। विश्वानि। अमृता। सौभगानि ॥१७॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 43; मन्त्र » 17
    अष्टक » 4; अध्याय » 2; वर्ग » 22; मन्त्र » 7

    भावार्थ -
    भा० - हम लोग ( अश्विनोः ) अश्वयुक्त सारथि और रथी इनके ( नूतनेन ) सदा नवीन, सदा तैयार, शुद्ध ( अवसा ) रक्षा करने वाले बल सैन्यादि से और ( मयोभुवा ) सुखोत्पादक ऐश्वर्य से युक्त होकर ( सुप्र-णीतौ ) उत्तम सुखकारक धर्मानुकूल नीति में ही ( सं-गभेम ) अच्छी प्रकार सत्संगी होकर चलें । हे उत्तम स्त्री पुरुषो! आप दोनों ( नः ) हमारे लिये ( रयिम् आ वहतम् ) ऐश्वर्य धारण करो और ( वीरान् आ वहतम् ) वीर, बलवान् पुत्र धारण करो और ( विश्वानि ) सब प्रकार के (अमृता) अविनाशी दीर्घ जीवनप्रद ( सौभगानि ) सुखप्रद ऐश्वर्य, सुख-सौभाग्य भी ( आ वहतम् ) सब प्रकार से प्राप्त करो। इति द्वाविंश वर्गः ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अत्रिर्ऋषिः ॥ विश्वेदेवा देवताः ॥ छन्द:–१, ३, ६, ८, ९, १७ निचृत्त्रिष्टुप् । २, ४, ५, १०, ११, १२, १५ त्रिष्टुप् । ७, १३ विराट् त्रिष्टुप् । १४ भुरिक्पंक्ति: । १६ याजुषी पंक्तिः ॥ सप्तदशर्चं सूक्तम् ॥

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