ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 51/ मन्त्र 15
स्व॒स्ति पन्था॒मनु॑ चरेम सूर्याचन्द्र॒मसा॑विव। पुन॒र्दद॒ताघ्न॑ता जान॒ता सं ग॑मेमहि ॥१५॥
स्वर सहित पद पाठस्व॒स्ति । पन्था॑म् । अनु॑ । च॒रे॒म॒ । सू॒र्या॒च॒न्द्र॒मसौ॑ऽइव । पुनः॑ । दद॑ता । अघ्न॑ता । जा॒न॒ता । सम् । ग॒मे॒म॒हि॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
स्वस्ति पन्थामनु चरेम सूर्याचन्द्रमसाविव। पुनर्ददताघ्नता जानता सं गमेमहि ॥१५॥
स्वर रहित पद पाठस्वस्ति। पन्थाम्। अनु। चरेम। सूर्याचन्द्रमसौऽइव। पुनः। ददता। अघ्नता। जानता। सम्। गमेमहि ॥१५॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 51; मन्त्र » 15
अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 7; मन्त्र » 5
अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 7; मन्त्र » 5
विषय - उत्तम आचरण और सत्संग का उपदेश ।
भावार्थ -
भा०-हम लोग (पन्थाम् ) उत्तम मार्ग पर (स्वस्ति) सुखपूर्वक (अनुचरेम) एक दूसरे के पीछे चलें । और (सूर्याचन्द्रमसौ-इव) हम स्त्री पुरुष सूर्य और चन्द्र के समान अन्यों को सुख देने के लिये उत्तम आचरण का अनुष्ठान करें। (पुनः) वार २ हम लोग (ददता) ज्ञान और ऐश्वर्य के देने वाले और ( अघ्नता ) व्यर्थ ताड़न, हिंसा और कठोर दण्ड न देने वाले ( जानता ) ज्ञानवान् पुरुष से ( संगमेमहि ) मिला करें, उसका सत्संग किया करें । इति सप्तमो वर्गः ॥
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - स्वस्त्यात्रेय ऋषिः ॥ विश्वेदेवा देवताः ॥ छन्द:-१ गायत्री । २, ३, ४ निचृद् गायत्री । ५, ८, ९, १० निचृदुष्णिक् । ६ उष्णिक् । ७ विराडुष्णिक् ११ निचृत्त्रिष्टुप । १२ त्रिष्टुप । १३ पंक्तिः । १४, १५ अनुष्टुप् ।।
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