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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 51 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 51/ मन्त्र 4
    ऋषिः - स्वस्त्यात्रेयः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    अ॒यं सोम॑श्च॒मू सु॒तोऽम॑त्रे॒ परि॑ षिच्यते। प्रि॒य इन्द्रा॑य वा॒यवे॑ ॥४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अयम् । सोमः॑ । च॒मू इति॑ । सु॒तः । अम॑त्रे । परि॑ । सि॒च्य॒ते॒ । प्रि॒यः । इन्द्रा॑य । वा॒यवे॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अयं सोमश्चमू सुतोऽमत्रे परि षिच्यते। प्रिय इन्द्राय वायवे ॥४॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अयम्। सोमः। चमू इति। सुतः। अमत्रे। परि। सिच्यते। प्रियः। इन्द्राय। वायवे ॥४॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 51; मन्त्र » 4
    अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 5; मन्त्र » 4

    भावार्थ -
    भा०- (इन्द्राय) ऐश्वर्यं युक्त वृद्धि और ( दायवे ) वायु के तुल्य शत्रु को उखाड़ने में समर्थ पद के लिये ( प्रियः ) प्रिय, उत्सुक, ( अयं सोमः ) यह अभिषेक योग्य पुरुष ( चमू-सुतः ) सेनाओं पर अभिषिक्त और सेनाओं का पुत्रवत् पालक है। उसका ( अमत्रे ) दुःखदायी कष्ट से त्राण करने वाले रक्षक पद पर ( परि सिच्यते ) अभिषेक किया जाना उचित है ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - स्वस्त्यात्रेय ऋषिः ॥ विश्वेदेवा देवताः ॥ छन्द:-१ गायत्री । २, ३, ४ निचृद् गायत्री । ५, ८, ९, १० निचृदुष्णिक् । ६ उष्णिक् । ७ विराडुष्णिक् ११ निचृत्त्रिष्टुप । १२ त्रिष्टुप । १३ पंक्तिः । १४, १५ अनुष्टुप् ।।

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