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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 78 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 78/ मन्त्र 1
    ऋषिः - अत्रिः देवता - अश्विनौ छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    अश्वि॑ना॒वेह ग॑च्छतं॒ नास॑त्या॒ मा वि वे॑नतम्। हं॒सावि॑व पतत॒मा सु॒ताँ उप॑ ॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अश्वि॑नौ । आ । इ॒ह । ग॒च्छ॒त॒म् । नास॑त्या । मा । वि । वे॒न॒त॒म् । हं॒सौऽइ॑व । प॒त॒त॒म् । आ । सु॒तान् । उप॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अश्विनावेह गच्छतं नासत्या मा वि वेनतम्। हंसाविव पततमा सुताँ उप ॥१॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अश्विनौ। आ। इह। गच्छतम्। नासत्या। मा। वि। वेनतम। हंसौऽइव। पततम्। आ। सुतान्। उप ॥१॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 78; मन्त्र » 1
    अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 19; मन्त्र » 1

    भावार्थ -
    भा०-हे ( अश्विनौ ) रथी सारथिवत् स्त्री पुरुषो ! आप दोनों ( इह ) इस गृहस्थाश्रम में रथीवत् होकर ( आगच्छतम् ) आया करो । हे ( नासत्या ) कभी असत्याचरण और अधर्म युक्त कार्य न करते हुए, सदा सत्यपूर्वक परस्पर के व्यवहारों को करते हुए ( मा वि वेनतम् ) एक दूसरे के विपरीत कभी इच्छा मत किया करो । प्रत्युत (सुतान् उप) अपने उत्पन्न पुत्रों और ऐश्वर्यों को प्राप्त करने के लिये ( हंसौ इव ) हंस हंसिनी युगल के समान ( आ पततम् ) आया करो ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - सप्तवध्रिरात्रेय ऋषिः।। अश्विनौ देवते । ७, ९ गर्भस्राविणी उपनिषत् ॥ छन्दः— १, २, ३ उष्णिक् । ४ निचृत्-त्रिष्टुप् । ५, ६ अनुष्टुप् । ७, ८, ९ निचृद्-नुष्टुप् ।।

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