ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 53/ मन्त्र 9
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - पूषा
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
या ते॒ अष्ट्रा॒ गोओ॑प॒शाघृ॑णे पशु॒साध॑नी। तस्या॑स्ते सु॒म्नमी॑महे ॥९॥
स्वर सहित पद पाठया । ते॒ । अष्ट्रा॑ । गोऽओ॑पशा । आघृ॑णे । प॒शु॒ऽसाध॑नी । तस्याः॑ । ते॒ । सु॒म्नम् । ई॒म॒हे॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
या ते अष्ट्रा गोओपशाघृणे पशुसाधनी। तस्यास्ते सुम्नमीमहे ॥९॥
स्वर रहित पद पाठया। ते। अष्ट्रा। गोऽओपशा। आघृणे। पशुऽसाधनी। तस्याः। ते। सुम्नम्। ईमहे ॥९॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 53; मन्त्र » 9
अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 18; मन्त्र » 4
अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 18; मन्त्र » 4
विषय - missing
भावार्थ -
हे (आ-घृणे) तेजस्विन् ! सूर्यवत् प्रतापिन् ! (पशु-साधनी ) पशुओं को वश करने वाली, ( अष्ट्रा गो-ओपशा ) बैलों के सदा समीप रहकर चाबुक जैसे उनको सन्मार्ग में चलाती है उसी प्रकार हे राजन् ! ( ते ) तेरी ( या ) जो (अष्ट्रा ) व्यापक शक्ति ( गो-ओपशा ) भूमि पर प्रशान्त रूप से विद्यमान रहकर ( पशु-साधनी ) पशु तुल्य मूर्ख जनों को भी अपने वश करने वाली, है ( तस्याः ) उसके ( सुम्नम् ) सुखकारी परिणाम को हम ( ते ) तुझ से ( ईमहे ) प्राप्त करें ।
टिप्पणी -
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ पूषा देवता ॥ छन्दः १, ३, ४, ६, ७, १० गायत्री । २, ५, ९ निचृद्गायत्री । ८ निचृदनुष्टुप् ।। दशर्चं सूक्तम् ।।
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