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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 59 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 59/ मन्त्र 1
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - इन्द्राग्नी छन्दः - निचृद्बृहती स्वरः - मध्यमः

    प्र नु वो॑चा सु॒तेषु॑ वां वी॒र्या॒३॒॑ यानि॑ च॒क्रथुः॑। ह॒तासो॑ वां पि॒तरो॑ दे॒वश॑त्रव॒ इन्द्रा॑ग्नी॒ जीव॑थो यु॒वम् ॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । नु । वो॒च॒ । सु॒तेषु॑ । वा॒म् । वी॒र्या॑ । यानि॑ । च॒क्रथुः॑ । ह॒तासः॑ । वा॒म् । पि॒तरः॑ । दे॒वऽश॑त्रवः । इन्द्रा॑ग्नी॒ इति॑ । जीव॑थः । यु॒वम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र नु वोचा सुतेषु वां वीर्या३ यानि चक्रथुः। हतासो वां पितरो देवशत्रव इन्द्राग्नी जीवथो युवम् ॥१॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र। नु। वोच। सुतेषु। वाम्। वीर्या। यानि। चक्रथुः। हतासः। वाम्। पितरः। देवऽशत्रवः। इन्द्राग्नी इति। जीवथः। युवम् ॥१॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 59; मन्त्र » 1
    अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 25; मन्त्र » 1

    भावार्थ -
    हे ( इन्द्राग्नी ) इन्द्र, सूर्य, वायु वा विद्युत् के समान बलवान् पुरुष और हे अग्नि के समान दीप्ति, उत्तेजना उत्पन्न करने वाली स्त्रि ! आप दोनों ( सुतेषु ) उत्पन्न होने वाले पुत्रों के निमित्त (यानि वीर्या ) जिन २ वीर्यों, बलयुक्त कार्यों को ( चक्रथुः ) करें मैं ( वां ) आप दोनों को उन आवश्यक कर्त्तव्यों का ( प्र वोच ) उपदेश करता हूं । देखो, ( देव-शत्रवः ) ‘देव’ अर्थात् प्रकाश, जल, पृथिवी आदि पदार्थों और शुभ गुणों के शत्रु, उनका सदुपयोग न करके दुरुपयोग करने वाले ( वां पितरः ) आप दोनों के पालक माता पिता, पितामह, चाचा आदि वृद्धजन ( हतासः ) अवश्य पीड़ित होते और मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं और ( युवम् ) तुम दोनों ( जीवथः ) अभी भी उनके बाद जीवित होकर दीर्घ जीवन का भोग करो । विद्युत्-अग्निपक्ष में ‘देव’ अर्थात् किरणों के शत्रुभूत या उनसे नष्ट होने वाले उसी प्रकार उत्तम गुणों के शत्रु, हिंसक जन्तु भी नाश को प्राप्त हों रोग आदि जन्तु ( पितरः ) जो अन्य जन्तुओं का नाश करते हैं वे भी (वां वीर्यैः हतास :) आप दोनों के बलों से विनष्ट हो जावें । ‘पितरः’ पीयतिहिंसाकर्मा । तस्यैतद्रूपम् इति सायणः ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ इन्द्राग्नी देवते ।। छन्दः – १, ३, ४, ५ निचृद् बृहती । २ विराड्बृहती । ६, ७, ९ भुरिगनुष्टुप् । १० अनुष्टुप् । ८ उष्णिक् ।। दशर्चं सूक्तम् ॥

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