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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 23 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 23/ मन्त्र 1
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - इन्द्र: छन्दः - भुरिक्पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः

    उदु॒ ब्रह्मा॑ण्यैरत श्रव॒स्येन्द्रं॑ सम॒र्ये म॑हया वसिष्ठ। आ यो विश्वा॑नि॒ शव॑सा त॒तानो॑पश्रो॒ता म॒ ईव॑तो॒ वचां॑सि ॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत् । ऊँ॒ इति॑ । ब्रह्मा॑णि । ऐ॒र॒त॒ । श्र॒व॒स्या । इन्द्र॑म् । स॒ऽम॒र्ये । म॒ह॒य॒ । व॒सि॒ष्ठ॒ । आ । यः । विश्वा॑नि । शव॑सा । त॒तान॑ । उ॒प॒ऽश्रो॒ता । मे॒ । ईव॑तः । वचां॑सि ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उदु ब्रह्माण्यैरत श्रवस्येन्द्रं समर्ये महया वसिष्ठ। आ यो विश्वानि शवसा ततानोपश्रोता म ईवतो वचांसि ॥१॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत्। ऊँ इति। ब्रह्माणि। ऐरत। श्रवस्या। इन्द्रम्। सऽमर्ये। महय। वसिष्ठ। आ। यः। विश्वानि। शवसा। ततान। उपऽश्रोता। मे। ईवतः। वचांसि ॥१॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 23; मन्त्र » 1
    अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 7; मन्त्र » 1

    भावार्थ -
    हे ( वसिष्ठ ) प्रजा को उत्तम रीति से वसाने और उनमें स्वयं भी अच्छी प्रकार वसने हारे उत्तम वसो ! राजन् ! प्रजाजन ! विद्वन् ! तू ( श्रवस्या ) धन, अन्न, और यश की कामना से ( ब्रह्माणि ) नाना ऐश्वर्यो को लक्ष्य कर ( उद् ऐरत उ ) उत्तम रीति से उपदेश कर । हे विद्वन् ! तू ( श्रवस्या ) ज्ञानोपदेश की कामना से ( ब्रह्माणि उद् ऐरत ) वेद मन्त्रों का उत्तम उपदेश कर । हे राजन् ! हे उत्तम प्रजावर्ग ! तू ( समर्ये ) संग्राम में वा मनुष्यों के एकत्र होने के स्थान, सभा आदि में ( इन्द्रम् ) ऐश्वर्यवान्, शत्रुहन्ता, वीर पुरुष का ( महय ) आदर सत्कार, विशेष सम्मान कर । हे उत्तम शिष्यवर्ग ! ( सम् अर्ये ) उत्तम ज्ञानोपार्जन के निमित्त ( इन्द्रं महय ) आचार्य का समान, पूजन किया कर । ( यः ) जो राजा ( उप-श्रोता ) प्रजाओं के कष्टों को ध्यान से श्रवण करने वाला ( शवसा ) बलपूर्वक ( ईवतः ) समीप आने वाले ( मे ) मेरे उपकारार्थ ( विश्वानि वचांसि ) समस्त उत्तम वचन, व आज्ञाएं (आ ततान) प्रदान करता है अथवा (यः शवसा विश्वानि वचांसि आततान ) जो बल के साथ सब प्रकार के आज्ञा वचन विस्तारित करता है वह ( ईवतः मे वचांसि उप-श्रोता ) शरण में आये मेरे वचनों को भी ध्यान से श्रवण करने हारा हो । इसी प्रकार जो विद्वान् ( शवसा वचांसि आततान ) ज्ञानपूर्वक वचन कहे वह प्राप्त शिष्य के वचनों को भी श्रवण करे ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - वसिष्ठ ऋषिः।। इन्द्रो देवता ॥ छन्दः – १, ६ भुरिक् पंक्ति: । ४ स्वराट् पंक्ति:। २, ३ विराट् त्रिष्टुप् । ५ निचृत्त्रिष्टुप् ॥ षडृचं सूक्तम्॥

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