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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 67 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 67/ मन्त्र 1
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - अश्विनौ छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    प्रति॑ वां॒ रथं॑ नृपती ज॒रध्यै॑ ह॒विष्म॑ता॒ मन॑सा य॒ज्ञिये॑न । यो वां॑ दू॒तो न धि॑ष्ण्या॒वजी॑ग॒रच्छा॑ सू॒नुर्न पि॒तरा॑ विवक्मि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्रति॑ । वा॒म् । रथ॑म् । नृ॒प॒ती॒ऽ इति॑ नृऽपती । ज॒रध्यै॑ । ह॒विष्म॑ता । मन॑सा । य॒ज्ञिये॑न । यः । वा॒म् । दू॒तः । न । धि॒ष्ण्यौ॒ । अजी॑गः । अच्छ॑ । सू॒नुः । न । पि॒तरा॑ । वि॒व॒क्मि॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रति वां रथं नृपती जरध्यै हविष्मता मनसा यज्ञियेन । यो वां दूतो न धिष्ण्यावजीगरच्छा सूनुर्न पितरा विवक्मि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्रति । वाम् । रथम् । नृपतीऽ इति नृऽपती । जरध्यै । हविष्मता । मनसा । यज्ञियेन । यः । वाम् । दूतः । न । धिष्ण्यौ । अजीगः । अच्छ । सूनुः । न । पितरा । विवक्मि ॥ ७.६७.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 67; मन्त्र » 1
    अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 12; मन्त्र » 1

    भावार्थ -
    हे (नृपती ) राजा रानी के समान, सब मनुष्यों के पालक सबके नायक प्राणों के पालक ! हे (धिष्ण्यौ) स्तुति योग्य ! उत्तम आसन के योग्य वा उत्तम बुद्धि सम्पन्न स्त्री पुरुषो ! ( यः ) जो ( दूतः न ) दूत, संदेश-हर के समान ( वां ) आप दोनों को ( अजीगः ) सचेत करता, जगाता है, ज्ञान देकर प्रबुद्ध करता है वह मैं विद्वान् जन ( वां प्रति ) आप दोनों के प्रति (हविष्मता ) उत्तम ग्रहण योग्य भावों से युक्त, (यज्ञियेन ) पूज्य सत्संग योग्य ( मनसा ) मन वा ज्ञान से ( जरध्यै ) उपदेश करने के लिये ( सूनुः पितरा न ) माता पिताओं के प्रति बालक के समान ( रथम् ) रमणीय वचन और उत्तम व्यवहार का ( अच्छ विवक्मि ) उपदेश करता हूं ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - वसिष्ठ ऋषिः ॥ अश्विनौ देवते ॥ छन्दः – १, २, ६, ७, ८, १० निचृत् त्रिष्टुप् । ३, ५, ९ विराट् त्रिष्टुप् । ४ आर्षी त्रिष्टुप् । दशर्चं सूक्तम् ॥

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