Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 79 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 79/ मन्त्र 1
    ऋषिः - कृत्नुर्भार्गवः देवता - सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    अ॒यं कृ॒त्नुरगृ॑भीतो विश्व॒जिदु॒द्भिदित्सोम॑: । ऋषि॒र्विप्र॒: काव्ये॑न ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒यम् । कृ॒त्नुः । अगृ॑भीतः । वि॒श्व॒ऽजित् । उ॒त्ऽभित् । इत् । सोमः॑ । ऋषिः॑ । विप्रः॑ । काव्ये॑न ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अयं कृत्नुरगृभीतो विश्वजिदुद्भिदित्सोम: । ऋषिर्विप्र: काव्येन ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अयम् । कृत्नुः । अगृभीतः । विश्वऽजित् । उत्ऽभित् । इत् । सोमः । ऋषिः । विप्रः । काव्येन ॥ ८.७९.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 79; मन्त्र » 1
    अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 33; मन्त्र » 1

    भावार्थ -
    (अयं) यह ( कृत्नुः ) जगत् का कर्त्ता, ( अगृभीतः ) किसी इन्द्रिय से कभी न ग्रहण करने योग्य, चक्षुरादि साधनों से अग्राह्य, अविज्ञेय, ( विश्वजित् ) समस्त ‘विश्व’ जगत् और प्राणि-संसार को अधीन रखने वाला, ( उद्भित् ) समस्त स्थावरों को पृथ्वी फोड़कर उत्पन्न करने वाला, ( सोमः इत् ) सब का उत्पादक होने से ‘सोम’ है। वही ( विप्रः ) सब ज्ञानों, कर्मों का दाता, विद्वान्, मेधावी ( काव्येन ) वेद-ज्ञान से ( ऋषि: ) सब सत्य ज्ञानों को देखने हारा है। ( २ ) इसी प्रकार राजा विद्वान् भी कर्मों का कर्त्ता, सब का विजेता, उत्तम कर्म फल का उत्पादक ‘उद्भित्’ शत्रुओं को उखाड़ने वाला, ( सोमः ) सब का सञ्चालक, सब ऐश्वर्यो का अधिपति, विद्वान् वेदद्वारा सत्य न्याय का द्रष्टा हो। शरीर में वीर्य वा प्राण सोम है, वह कर्म का कर्त्ता, इन्द्रियजित् ( उद्भित् ) ऊर्ध्व मार्ग ब्रह्मरन्ध्र को भी भेदन करने में समर्थ है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - कृत्नुर्भार्गव ऋषिः। सोमो देवता॥ छन्दः—१, २, ६ निचृद् गायत्री। ३ विराड् गायत्री। ४, ५, ७, ८ गायत्री। ९ निचृदनुष्टुप्॥ नवर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top