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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 14 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 14/ मन्त्र 1
    ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    परि॒ प्रासि॑ष्यदत्क॒विः सिन्धो॑रू॒र्मावधि॑ श्रि॒तः । का॒रं बिभ्र॑त्पुरु॒स्पृह॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    परि॑ । प्र । अ॒सि॒स्य॒द॒त् । क॒विः । सिन्धोः॑ । ऊ॒र्मौ । अधि॑ । श्रि॒तः । का॒रम् । बिभ्र॑त् । पु॒रु॒ऽस्पृह॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    परि प्रासिष्यदत्कविः सिन्धोरूर्मावधि श्रितः । कारं बिभ्रत्पुरुस्पृहम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    परि । प्र । असिस्यदत् । कविः । सिन्धोः । ऊर्मौ । अधि । श्रितः । कारम् । बिभ्रत् । पुरुऽस्पृहम् ॥ ९.१४.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 14; मन्त्र » 1
    अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 3; मन्त्र » 1

    भावार्थ -
    (सिन्धोः ऊर्मौ अधि श्रितः) नदी या समुद्र की तरंग पर स्थित मनुष्य जिस प्रकार (परि प्र असिष्यदत्) दूर २ तक वेग से चला जाता है उसी प्रकार (पुरु-स्पृहं) बहुतों को अच्छा लगने वाले, (कारं) कार्य या रथ को (बिभ्रत्) धारण करता हुआ, (सिन्धोः ऊर्मौ) समुद्र के समान अपार जन संघ के बीच उन्नत पद पर (अधिश्रितः) अधिष्ठित होकर (परि प्र असिष्यत्) सब प्रकार से उन्नति की ओर जाता है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्दः-१-३,५,७ गायत्री। ४,८ निचृद् गायत्री। ६ ककुम्मती गायत्री॥ अष्टर्चं सूक्तम्॥

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