Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 25 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 25/ मन्त्र 2
    ऋषिः - दृळहच्युतः आगस्त्यः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    पव॑मान धि॒या हि॒तो॒३॒॑ऽभि योनिं॒ कनि॑क्रदत् । धर्म॑णा वा॒युमा वि॑श ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पव॑मान । धि॒या । हि॒तः । अ॒भि । योनि॑म् । कनि॑क्रदत् । धर्म॑णा । वा॒युम् । आ । वि॒श॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पवमान धिया हितो३ऽभि योनिं कनिक्रदत् । धर्मणा वायुमा विश ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पवमान । धिया । हितः । अभि । योनिम् । कनिक्रदत् । धर्मणा । वायुम् । आ । विश ॥ ९.२५.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 25; मन्त्र » 2
    अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 15; मन्त्र » 2

    भावार्थ -
    हे (पवमान) पवित्र रूप ! हे देह में आने वाले ! तू (धिया हितः) कर्म वा मानस कामना द्वारा बद्ध होकर (योनिम् अभि कनिक्रदत्) गृहत् देह को प्राप्त होता है। और (धर्मणा) धारण सामर्थ्य से (वायुम् आ विश) प्राण तक में प्रविष्ट है। (२) इसी प्रकार ‘पवमान’ व्यापक प्रभु (धिया) ज्ञान बल से सर्वत्र विद्यमान विश्वों को चलाता है वह धारक प्रयत्न से वायु प्रत्येक गतिमान् पदार्थ तक के भीतर है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - दृढ़च्युतः आगस्त्य ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:– १, ३, ५, ६ गायत्री। २, ४ निचृद गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top