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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 26 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 26/ मन्त्र 2
    ऋषिः - इध्मवाहो दाळर्हच्युतः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    तं गावो॑ अ॒भ्य॑नूषत स॒हस्र॑धार॒मक्षि॑तम् । इन्दुं॑ ध॒र्तार॒मा दि॒वः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तम् । गावः॑ । अ॒भि । अ॒नू॒ष॒त॒ । स॒हस्र॑ऽधारम् । अक्षि॑तम् । इन्दु॑म् । ध॒र्तार॑म् । आ । दि॒वः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तं गावो अभ्यनूषत सहस्रधारमक्षितम् । इन्दुं धर्तारमा दिवः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तम् । गावः । अभि । अनूषत । सहस्रऽधारम् । अक्षितम् । इन्दुम् । धर्तारम् । आ । दिवः ॥ ९.२६.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 26; मन्त्र » 2
    अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 16; मन्त्र » 2

    भावार्थ -
    (दिवः) सूर्यादि लोकों को (आ धर्तारम्) सब ओर से धारण करने वाले (सहस्र-धारम्) सहस्रों वाणियों वाले, वा सहस्रों अपरिमित लोकों के धारक, (अक्षितम्) अक्षय, अविनाशी, (इन्दुम्) ऐश्वर्यवान् (तम्) उस प्रभु की ही (गावः अभि अनूषत) समस्त वाणियां स्तुति करती हैं।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - इध्मवाहो दार्ढच्युत ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ३–५ निचृद गायत्री। २, ६ गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥

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