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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 46 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 46/ मन्त्र 6
    ऋषिः - अयास्यः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    ए॒तं मृ॑जन्ति॒ मर्ज्यं॒ पव॑मानं॒ दश॒ क्षिप॑: । इन्द्रा॑य मत्स॒रं मद॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒तम् । मृ॒ज॒न्ति॒ । मर्ज्य॑म् । पव॑मानम् । दश॑ । क्षिपः॑ । इन्द्रा॑य । म॒त्स॒रम् । मद॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एतं मृजन्ति मर्ज्यं पवमानं दश क्षिप: । इन्द्राय मत्सरं मदम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एतम् । मृजन्ति । मर्ज्यम् । पवमानम् । दश । क्षिपः । इन्द्राय । मत्सरम् । मदम् ॥ ९.४६.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 46; मन्त्र » 6
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 3; मन्त्र » 6

    भावार्थ -
    (दश क्षिपः) दशों शत्रुओं को उखाड़ देने वाली सेनाएं विवेकशील अज्ञान-निवर्त्तक दश अमात्य-प्रकृतिएं (एतं) इस (मर्ज्यं) अभिषेक योग्य (पवमानं) राज्य के कण्टकों के शोधन करने वाले (मदं) आनन्दकारक, (मत्सरं) प्रजा को प्रसन्न करने वाले, (एतं) इस पुरुष को (इन्द्राय) ऐश्वर्य युक्त पद के लिये (मृजन्ति) परिष्कृत वा अभिषिक्त करती हैं। इति तृतीयो वर्गः॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अयास्य ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता। छन्द:- १ ककुम्मती गायत्री। २, ४, ६ निचृद् गायत्री। ३, ५ गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥

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