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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 99 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 99/ मन्त्र 6
    ऋषिः - रेभसूनू काश्यपौ देवता - पवमानः सोमः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    स पु॑ना॒नो म॒दिन्त॑म॒: सोम॑श्च॒मूषु॑ सीदति । प॒शौ न रेत॑ आ॒दध॒त्पति॑र्वचस्यते धि॒यः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः । पु॒ना॒नः । म॒दिन्ऽत॑मः । सोमः॑ । च॒मूषु॑ । सी॒द॒ति॒ । प॒शौ । न । रेतः॑ । आ॒ऽदधत् । पतिः॑ । व॒च॒स्य॒ते॒ । धि॒यः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स पुनानो मदिन्तम: सोमश्चमूषु सीदति । पशौ न रेत आदधत्पतिर्वचस्यते धियः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सः । पुनानः । मदिन्ऽतमः । सोमः । चमूषु । सीदति । पशौ । न । रेतः । आऽदधत् । पतिः । वचस्यते । धियः ॥ ९.९९.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 99; मन्त्र » 6
    अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 26; मन्त्र » 1

    भावार्थ -
    (सः) वह (पुनानः) अति स्वच्छ, पवित्र रूप होता हुआ, (मदिन्तमः) अति अधिक आनन्ददायी होकर (सोमः) सर्व प्रेरक आत्मा, (चमूषु) विषयों को रसास्वादन करने वाली इन्द्रियों पर अध्यक्ष के तुल्य (सीदति) विराजता है। वह (पशौ न रेतः) भारवाही पशु पर जिस प्रकार लोग जल लादते हैं उसी प्रकार (पशौ) अर्थद्रष्टा इन्द्रिय में वह आत्मा भी (रेतः आदधत्) अपना तेज और वीयें प्रदान करता है, उसी के समान सामर्थ्य प्राप्त कर इन्द्रिय अपना ग्राह्य विषय भली प्रकार देखती हैं। वही (धियः पतिः) ज्ञानमयी बुद्धि वाणी और कर्म का स्वामी (वचस्यते) कहलाता है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - रेभसून् काश्यपावृषी॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १ विराड् बृहती। २, ३, ५, ६ अनुष्टुप्। ४, ७, ८ निचृदनुष्टुप्। अष्टर्चं सूक्तम्।

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