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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 151
ऋषिः - श्रुतकक्षः सुकक्षो वा देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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इ꣣ष्टा꣡ होत्रा꣢꣯ असृक्ष꣣ते꣡न्द्रं꣢ वृ꣣ध꣡न्तो꣢ अध्व꣣रे꣢ । अ꣡च्छा꣢वभृ꣣थ꣡मोज꣢꣯सा ॥१५१॥

स्वर सहित पद पाठ

इ꣣ष्टाः꣢ । हो꣡त्राः꣢꣯ । अ꣣सृक्षत । इ꣡न्द्र꣢꣯म् । वृ꣣ध꣡न्तः꣢ । अ꣣ध्वरे꣢ । अ꣡च्छ꣢꣯ । अ꣣वभृथ꣢म् । अ꣣व । भृथ꣢म् । ओ꣡ज꣢꣯सा ॥१५१॥


स्वर रहित मन्त्र

इष्टा होत्रा असृक्षतेन्द्रं वृधन्तो अध्वरे । अच्छावभृथमोजसा ॥१५१॥


स्वर रहित पद पाठ

इष्टाः । होत्राः । असृक्षत । इन्द्रम् । वृधन्तः । अध्वरे । अच्छ । अवभृथम् । अव । भृथम् । ओजसा ॥१५१॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 151
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 1; मन्त्र » 7
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 4;
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भावार्थ -

भा० = ( अध्वरे ) = इस हिंसारहित या कभी नष्ट न होने वाले जीवनमय या आत्मज्ञानमय यज्ञ में ( इष्टा: ) = याग करने वाले या विषयरूप हवियों की आहुति प्राप्त करने वाले ( होत्रा:१  ) = ग्राह्य विषयाहुति को भांतर के चितिशक्ति की ज्वाला में हवन करनेवाले सात ऋषि, सात इन्द्रियां ( इन्द्रं वृधन्तः ) = आत्मा के ऐश्वर्य, ज्ञान गौरव को बढ़ाते हुए ( ओजसा ) = ज्ञान और बल से ( अवभृथम् ) = पूर्ण समाप्ति के अवभृथ स्नान पर्यन्त ( अच्छा) = उत्तम रूप से ( असृक्षत ) = यज्ञ करते हैं और बिसर्जन करते हैं ।

ब्राह्म यज्ञ की आध्यात्म व्याख्या का यह मूलमन्त्र है। शिर में सात छिद्र ,२ आंख, २ नाक, २ कान, १ मुख ये सात ऋषि सात होता है मुख्य आसन्य प्राण-आत्मा 'इन्द्र' है, वाक् सरस्वती यज्ञ की सम्पादिका भिषक् है, चितिशक्ति शची है। इत्यादि वैदिक अलंकार हैं। विशेष देखो छान्दोग्य उप० ( अ० ३ । ख० १६, १७। ) 

ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -

ऋषिः - श्रुतकक्षः सुकक्षो वा। 

देवता - इन्द्रः। 

छन्दः - गायत्री। 

स्वरः - षड्ज। 

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