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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1644
ऋषिः - श्रुतकक्षः सुकक्षो वा आङ्गिरसः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
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शि꣡क्षा꣢ ण इ꣣न्द्र꣢꣫ राय आ पु꣣रु꣢ वि꣣द्वा꣡ꣳ ऋ꣡चीषम । अ꣡वा꣢ नः꣣ पा꣢र्ये꣣ ध꣡ने꣢ ॥१६४४॥
स्वर सहित पद पाठशि꣡क्ष꣢꣯ । नः꣣ । इन्द्र । रायः꣢ । आ । पु꣣रु꣢ । वि꣣द्वा꣢न् । ऋ꣣चीषम । अ꣡व꣢꣯ । नः꣣ । पा꣡र्ये꣢꣯ । ध꣡ने꣢꣯ ॥१६४४॥
स्वर रहित मन्त्र
शिक्षा ण इन्द्र राय आ पुरु विद्वाꣳ ऋचीषम । अवा नः पार्ये धने ॥१६४४॥
स्वर रहित पद पाठ
शिक्ष । नः । इन्द्र । रायः । आ । पुरु । विद्वान् । ऋचीषम । अव । नः । पार्ये । धने ॥१६४४॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1644
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 10; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 17; खण्ड » 3; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 10; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 17; खण्ड » 3; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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विषय - missing
भावार्थ -
हे (ऋचीषम) स्तुतियों द्वारा प्राप्त करने योग्य इन्द ! परमेश्वर आप (विद्वान) सर्वज्ञ हैं। आप (नः) हमें (रायः) धन नाना प्रकार के दान (पुरु) बहुत वार, एवं बहुत से प्रकारों से (आ शिक्ष) दान दो। और (पार्ये) परम उत्कृष्ट (धने) धन, मोक्ष के प्राप्त करने में (नः) हमें (अव) रक्षाकर।
सायण ने ‘पार्ये धने’ इसका अर्थ किया है—“पाराः शत्रवः तत्र भवे धने” अर्थात् शत्रुओं का धन लूटने के अवसर पर ईश्वर हमारी रक्षा करे। इन्द्र अर्थात्=राजाके पक्षमें यह अर्थ संगत है। ईश्वर पक्ष में—मोक्ष को ‘पर पार’ कहा जाता है। उस में प्राप्त करने योग्य धन मोक्षानन्द है। उस को प्राप्त करने में आने वाले विघ्नों के बीच रक्षा करने की ईश्वर से प्रार्थना है। यही अर्थ आचार्य और गुरु के पक्ष में भी संगत है।
टिप्पणी -
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ऋषिः—१, ७ शुनःशेप आजीगतिः। २ मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः। ३ शंयुर्वार्हस्पत्यः। ४ वसिष्ठः। ५ वामदेवः। ६ रेभसूनु काश्यपौ। ८ नृमेधः। ९, ११ गोषूक्त्यश्वसूक्तिनौ काण्वायनौ। १० श्रुतकक्षः सुकक्षो वा। १२ विरूपः। १३ वत्सः काण्वः। १४ एतत्साम॥ देवता—१, ३, ७, १२ अग्निः। २, ८-११, १३ इन्द्रः। ४ विष्णुः। ५ इन्द्रवायुः। ६ पवमानः सोमः। १४ एतत्साम॥ छन्दः—१, २, ७, ९, १०, ११, १३, गायत्री। ३ बृहती। ४ त्रिष्टुप्। ५, ६ अनुष्टुप्। ८ प्रागाथम्। ११ उष्णिक्। १४ एतत्साम॥ स्वरः—१, २, ७, ९, १०, १२, १३, षड्जः। ३, ९, मध्यमः, ४ धैवतः। ५, ६ गान्धारः। ११ ऋषभः १४ एतत्साम॥
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