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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 186
ऋषिः - वत्सः काण्वः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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ग꣣व्यो꣢꣫ षु णो꣣ य꣡था꣢ पु꣣रा꣢श्व꣣यो꣡त र꣢꣯थ꣣या꣢ । व꣣रिवस्या꣢ म꣣हो꣡ना꣢म् ॥१८६॥

स्वर सहित पद पाठ

ग꣣व्य꣢ । उ꣣ । सु꣢ । नः꣣ । य꣡था꣢꣯ । पु꣣रा꣢ । अ꣣श्वया꣢ । उ꣣त꣢ । र꣣थया꣢ । व꣣रिवस्या꣢ । म꣣हो꣡ना꣢म् ॥१८६॥


स्वर रहित मन्त्र

गव्यो षु णो यथा पुराश्वयोत रथया । वरिवस्या महोनाम् ॥१८६॥


स्वर रहित पद पाठ

गव्य । उ । सु । नः । यथा । पुरा । अश्वया । उत । रथया । वरिवस्या । महोनाम् ॥१८६॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 186
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 5; मन्त्र » 2
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 8;
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भावार्थ -

भा० = हे साधक ! ( यथा पुरा ) = पूर्व के समान ( गव्या ) = गौ आदि पशुओं की इच्छा से, ( अश्वशा ) = अश्व आदि शीघ्रगामी साधनों की कामना से और ( रथया ) = रथों की कामना से ( उत ) = और ( महोनाम् ) = धनों के प्राप्त करने के लिये तू ( वारिवस्य ) = उपासना कर । अध्यात्म में-गौ=इन्द्रियां, अश्व=मन और रथ=शरीर ।  इन तीनों को उत्तम रीति से वश करने और बलवान् बनाने की कामना से इन्द्र=आत्मा और परमेश्वर की उपासना आवश्यक है। 

ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -

 

ऋषिः - वत्सः ।

देवता - इन्द्रः।

छन्दः - गायत्री।

स्वरः - षड्जः। 

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