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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 732
ऋषिः - त्रिशोकः काण्वः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
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मा꣡ त्वा꣢ मू꣣रा꣡ अ꣢वि꣣ष्य꣢वो꣣ मो꣢प꣣ह꣡स्वा꣢न꣣ आ꣡ द꣢भन् । मा꣡ कीं꣢ ब्रह्म꣣द्वि꣡षं꣢ वनः ॥७३२॥
स्वर सहित पद पाठमा । त्वा꣣ । मूराः꣢ । अ꣣विष्य꣡वः꣢ । मा । उ꣣प꣡ह꣢स्वानः । उप । ह꣡स्वा꣢꣯नः । आ । द꣣भन् । मा꣢ । की꣣म् । ब्रह्मद्वि꣡ष꣢म् । ब्र꣣ह्म । द्वि꣡ष꣢꣯म् । व꣣नः ॥७३२॥
स्वर रहित मन्त्र
मा त्वा मूरा अविष्यवो मोपहस्वान आ दभन् । मा कीं ब्रह्मद्विषं वनः ॥७३२॥
स्वर रहित पद पाठ
मा । त्वा । मूराः । अविष्यवः । मा । उपहस्वानः । उप । हस्वानः । आ । दभन् । मा । कीम् । ब्रह्मद्विषम् । ब्रह्म । द्विषम् । वनः ॥७३२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 732
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 2; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 2; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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विषय - "Missing"
भावार्थ -
भा० = (२) हे ( इन्द्र ) = आत्मन् ! ( मूराः ) = मूर्ख ( अविष्यवः ) = तुझे पालने पोषणे की चेष्टा करने हारे भोगी विलासी लोग ( त्वा ) = तुझे ( मा दभन् ) = नाश न करें । ( मा उपहस्वानः ) = तुझ पर उपहास करनेहारे, तेरे उपेक्षाकारी भी तेरा विनाश न करें। और ( ब्रह्मद्विषः ) = वेद और ब्रह्मज्ञान का प्रेम न रखने वाले तेरा कभी सेवन न करें, तेरा कभी आनन्द लाभ न करें। मूर्ख लोग देह की पालना कर आत्मा का नाश करते हैं उपहास कारी लोग नास्तिक भी आत्मा का नाश करते हैं, पापों में बह जाते हैं और वेद और ब्रह्मविद्या के द्वेषी भी आत्मज्ञान का आनन्द नहीं पाते ।
टिप्पणी -
७३२– [२] 'ब्रह्मद्विषो' इति ऋ० ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ऋषिः - त्रिशोक:। देवता - इन्द्र। स्वरः - षड्ज: ।
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