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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 791
ऋषिः - मेधातिथिः काण्वः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
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अ꣣ग्नि꣡म꣢ग्नि꣣ꣳ ह꣡वी꣢मभिः꣣ स꣡दा꣢ हवन्त वि꣣श्प꣡ति꣢म् । ह꣣व्यवा꣡हं꣢ पुरुप्रि꣣य꣢म् ॥७९१॥
स्वर सहित पद पाठअ꣣ग्नि꣡म꣢ग्निम् । अ꣣ग्नि꣢म् । अ꣣ग्निम् । ह꣡वी꣢꣯मभिः । स꣡दा꣢꣯ । ह꣣वन्त । विश्प꣡ति꣢म् । ह꣣व्यवा꣡ह꣢म् । ह꣣व्य । वा꣡ह꣢꣯म् । पु꣣रुप्रिय꣢म् । पु꣣रु । प्रिय꣢म् ॥७९१॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्निमग्निꣳ हवीमभिः सदा हवन्त विश्पतिम् । हव्यवाहं पुरुप्रियम् ॥७९१॥
स्वर रहित पद पाठ
अग्निमग्निम् । अग्निम् । अग्निम् । हवीमभिः । सदा । हवन्त । विश्पतिम् । हव्यवाहम् । हव्य । वाहम् । पुरुप्रियम् । पुरु । प्रियम् ॥७९१॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 791
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 6; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 6; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
Acknowledgment
विषय - missing
भावार्थ -
विद्वान् लोग (अग्निम्-अग्निम्) सबके आगे विद्यमान प्रकाश-स्वरूप, ज्ञानप्रद, आचार्यरूप सर्वोत्तम अग्नि और सब पापों के विनाशक (विश्पतिं) सब प्रजाओं के स्वामी, (पुरुप्रियं) समस्त प्रजाओं के प्रेम पात्र, (हव्यवाहं) समस्त स्तुतियों को धारण करने वाले परमात्मा को ही (हवीमभिः) स्तुति करने योग्य मन्त्रों से (सदा) नित्य (हवन्ते) स्मरण करते हैं, पुकारते हैं।
टिप्पणी -
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - missing
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