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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 43 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 43/ मन्त्र 2
    ऋषिः - पुरुमीळहाजमीळहौ सौहोत्रौ देवता - अश्विनौ छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    को मृ॑ळाति कत॒म आग॑मिष्ठो दे॒वाना॑मु कत॒मः शंभ॑विष्ठः। रथं॒ कमा॑हुर्द्र॒वद॑श्वमा॒शुं यं सूर्य॑स्य दुहि॒तावृ॑णीत ॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कः । मृ॒ळा॒ति॒ । क॒त॒मः । आऽग॑मिष्ठः । दे॒वाना॑म् । ऊँ॒ इति॑ क॒त॒मः । शम्ऽभ॑विष्ठः । रथ॑म् । कम् । आ॒हुः॒ । द्र॒वत्ऽअ॑श्वम् । आ॒शुम् । यम् । सूर्य॑स्य । दु॒हि॒ता । अवृ॑णीत ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    को मृळाति कतम आगमिष्ठो देवानामु कतमः शंभविष्ठः। रथं कमाहुर्द्रवदश्वमाशुं यं सूर्यस्य दुहितावृणीत ॥२॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कः। मृळाति। कतमः। आऽगमिष्ठः। देवानाम्। ऊम् इति । कतमः। शम्ऽभविष्ठः। रथम्। कम्। आहुः। द्रवत्ऽअश्वम्। आशुम्। यम्। सूर्यस्य। दुहिता। अवृणीत ॥२॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 43; मन्त्र » 2
    अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 19; मन्त्र » 2

    भावार्थ -
    (यम्) जिसको (सूर्यस्य) सूर्य के समान तेजस्वी विद्वान् पुरुष की (दुहिता) पुत्री, उषा या प्रभात वेला के समान कान्तिमती, उज्ज्वल गुण-रूप वाली कन्या (अवृणीत) पति रूप से वरण करे । ऐसे (कम्) किस (द्रवद्-अश्वम्) अति तीव्र वेग से जाने वाले अश्वों से युक्त (रथम्) रथ के समान (द्रवत्-अश्वम्) द्रुत, प्रेम-पूर्ण आत्मा वाले (रथं) रमण योग्य पुरुष को (आहुः) विद्वान् लोग बतलाते हैं । (कः मृळाति) कौन पुरुष कन्या को सुख देने में समर्थ है, (कतमः) कौनसा (आ-गमिष्ठः) आने वालों में सबसे श्रेष्ठ, आदर योग्य है, (देवानाम् उ) कन्या को चाहने वाले विद्वान् वरों में से भी (कतमः) कौनसा (शं भविष्ठः) सबसे अधिक कल्याण और सुख को देने वाला है । यह निर्णय करके उसी पुरुष को कन्या वरण करे ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - पुरुमीळ्हाजमीळ्हौ सौहोत्रावृषी। अश्विनौ देवते ॥ छन्द:– १, त्रिष्टुप। २, ३, ५, ६, ७ निचृत् त्रिष्टुप । ४ स्वराट् पंक्तिः ॥ सप्तर्चं सूक्तम्॥

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