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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 5 के मन्त्र
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ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 5/ मन्त्र 8
ऋषिः - मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - पादनिचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
त्वां स्तोमा॑ अवीवृध॒न्त्वामु॒क्था श॑तक्रतो। त्वां व॑र्धन्तु नो॒ गिरः॑॥
स्वर सहित पद पाठत्वाम् । स्तोमाः॑ । अ॒वी॒वृ॒ध॒न् । त्वाम् । उ॒क्था । श॒त॒क्र॒तो॒ इति॑ शतऽक्रतो । त्वाम् । व॒र्ध॒न्तु॒ । नः॒ । गिरः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वां स्तोमा अवीवृधन्त्वामुक्था शतक्रतो। त्वां वर्धन्तु नो गिरः॥
स्वर रहित पद पाठत्वाम्। स्तोमाः। अवीवृधन्। त्वाम्। उक्था। शतक्रतो इति शतऽक्रतो। त्वाम्। वर्धन्तु। नः। गिरः॥
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 5; मन्त्र » 8
अष्टक » 1; अध्याय » 1; वर्ग » 10; मन्त्र » 3
अष्टक » 1; अध्याय » 1; वर्ग » 10; मन्त्र » 3
পদার্থ -
ত্বাংস্তোমা অবীবৃধন্ ত্বামুক্থা শতক্রতো।
ত্বাং বর্ধন্তু নো গিরঃ।।১১।।
(ঋগ্বেদ ১।৫।৮)
পদার্থঃ হে (শতক্রতো) সৃষ্টি, নির্মাণ, পালন আদি অসংখ্য কর্মের কর্তা অনন্ত (ত্বাম্) জ্ঞানস্বরূপ পরমাত্মা! যেমন (স্তোমাঃ) বেদের স্তোত্র তথা (উক্থা) অবশ্য পাঠ্য বেদস্থ সকল মন্ত্র (ত্বাম্) তোমার (অবীবৃধন্) বিভূতির বর্ণনা করে, তেমনই (নঃ) আমাদের (গিরঃ) বিদ্যা এবং হৃদয়ের সত্য (ত্বাম্) তোমাকে (বর্ধন্তু) প্রকাশিত করে।
ভাবার্থ -
ভাবার্থঃ হে সর্বশক্তিমান জগদীশ্বর! সমগ্র বেদ তোমার মহিমাকেই বর্ণনা করে। আমাদের উপর কৃপা করো যেন আমরা, তোমার সন্তানেরা সকলেই তোমার অপার যশের গান করি। আমাদের ভক্তি, বিদ্যাতে যেন তোমারই প্রকাশ হয়।।১১।।
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