ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 91/ मन्त्र 8
त्वं न॑: सोम वि॒श्वतो॒ रक्षा॑ राजन्नघाय॒तः। न रि॑ष्ये॒त्त्वाव॑त॒: सखा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठत्वम् । नः॒ । सो॒म॒ । वि॒श्वतः॑ । रक्ष॑ । रा॒ज॒न् । अ॒घ॒ऽय॒तः । न । रि॒ष्ये॒त् । त्वाऽव॑तः । सखा॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वं न: सोम विश्वतो रक्षा राजन्नघायतः। न रिष्येत्त्वावत: सखा ॥
स्वर रहित पद पाठत्वम्। नः। सोम। विश्वतः। रक्ष। राजन्। अघऽयतः। न। रिष्येत्। त्वाऽवतः। सखा ॥ १.९१.८
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 91; मन्त्र » 8
अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 20; मन्त्र » 3
अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 20; मन्त्र » 3
विषय - प्रार्थनाविषयः
व्याखान -
(सोम, राजन्) हे सोम! राजनीश्वर ! (त्वम्) तुम (अघायतः) जो कोई प्राणी हममें पापी और पाप करने की इच्छा करनेवाले हों (विश्वतः) उन सब प्राणियों से (नः) हमारी (रक्ष) रक्षा करो, (त्वावतः सखा) जिसके आप सगे मित्र हों (न, रिष्येत्) वह कभी विनष्ट नहीं होता, किन्तु हमको आपके सहाय से तिलमात्र भी दुःख वा भय कभी नहीं होगा, जो आपका मित्र और जिसके आप मित्र हो, उसको दुःख क्योंकर हो ॥ २० ॥
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