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  • यजुर्वेद - अध्याय 23/ मन्त्र 51
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - पुरुषेश्वरो देवता छन्दः - पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
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    केष्व॒न्तः पुरु॑ष॒ऽआ वि॑वेश॒ कान्य॒न्तः पुरु॑षे॒ऽअर्पि॑तानि।ए॒तद् ब्र॑ह्म॒न्नुप॑ वल्हामसि त्वा॒ किस्वि॑न्नः॒ प्रति॑ वोचा॒स्यत्र॑॥५१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    केषु॑। अ॒न्तरित्य॒न्तः। पुरु॑षः। आ। वि॒वे॒श॒। कानि॑। अ॒न्तरित्य॒न्तः। पुरु॑षे। अर्पि॑तानि। ए॒तत्। ब्र॒ह्म॒न्। उप॑। व॒ल्हा॒म॒सि॒। त्वा॒। किम्। स्वि॒त्। नः॒। प्रति॑। वो॒चा॒सि॒। अत्र॑ ॥५१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    केष्वन्तः पुरुषऽआ विवेश कान्यन्तः पुरुषेऽअर्पितानि । एतद्ब्रह्मन्नुपवल्हामसि त्वा किँ स्विन्नः प्रति वोचास्यत्र ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    केषु। अन्तरित्यन्तः। पुरुषः। आ। विवेश। कानि। अन्तरित्यन्तः। पुरुषे। अर्पितानि। एतत्। ब्रह्मन्। उप। वल्हामसि। त्वा। किम्। स्वित्। नः। प्रति। वोचासि। अत्र॥५१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 23; मन्त्र » 51
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    शब्दार्थ -
    शब्दार्थ - हे (ब्राह्मन्) वेदज्ञ विद्वान, आपण सांगा की (केषु) कोणा कोणात (वा कुठे-कुठे) (पुरूषः) तो परिपूर्ण परमेश्‍वर (अन्तः) आतपर्यंत (आविवेश) प्रविष्ट झालेला आहे? आणि (कामि) कोण आहेत जे (पुरूषे) व्या परम पुरूषाच्या (अन्तः) आत (अर्पितानि) स्थापित केले गेले आहेत? (कोण आहेत ज्यानी ईश्‍वराला स्वतःच्या हृदयात विद्यमान असे अनुभवले आहे?) या विषयीच्या ज्ञानाने आम्ही (जिज्ञासूजन) (उप, वह्लामसि) समृद्ध वा मुख्य होऊ, यामुळे (एतत्) हा प्रश्‍न (त्वा) आपणाला विचारीत आहोत या अध्यात्मविषयात (नः) (प्रति) आमच्यासाठी (किं, स्वित्) काय उपयोगी वा हितकारी असेल, ते आपण (वोचासि) आम्हाला सांगा ॥51॥

    भावार्थ - भावार्थ - विद्वानेतर लोकांचे कर्तव्य आहे की त्यांनी चार वेदांचे ज्ञाता विद्वानाला असे प्रश्‍न विचारावेत की सांगा, पूर्ण परमेश्‍वर कोणात्या वस्तूत प्रविष्ट आहे आणि कोण त्याच्या अंतर्गत आहेत? आम्ही आपणास हे प्रश्‍न विचारीत आहोत कृपया सत्य ते सांगा की जे कळल्यामुळे आम्ही उत्तम मनुष्य होऊ शकू. ॥51॥

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